कही हकीकति सब आल्हाकी धावन हाथ जोरिशिरनाय ७०
सुनिकै बातैं धावन मुख की मलखे घोड़ी लीन मँगाय॥
मल्हना केरे फिरि महलन ते आल्हा कूच दीन करवाय ७१
बाजे डंका अहतंका के कनउज चले बनाफरराय॥
व्याकुल रैयत भै मोहबे के काहू धीर धरा ना जाय ७२
भोजन कीन्ह्योकोउतादिनना सोवन रात दीन बिसराय॥
जहँ तहँ गाथा बघऊदन की घर घर रहे नारिनर गाय ७३
चढ़ा कबुतरी पर मलखाने मारग मिला तुरतही आय॥
कुशल पूँछिकै आल्हा अकुर आपनिकुशलदीनबतलाय ७४
जो कछु भाषा परिमालिक ने आल्हा सत्य सत्य गे गाय॥
मलखे बोले तब आल्हा ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ७५
चलिकै रहिये तुम सिरसा में करिहै काह चँदेलोराय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले दादा साँच देयँ बतलाय ७६
अब नहिं टिकि हैं हम सिरसामें चहु तुम कोटिनकरो उपाय॥
राज्य छोड़िकै परिमालिक की जयचँद पुरीजायँहमभाय ७७
जब सुधिआवै नृप बातन कै तब मन पीर होय अधिकाय॥
बात के मारे जो मरि है ना मरिहै काह लात के घाय ७८
आज तो घोड़ा पिरथी मांगा काल्हिकोतिरियालेत मँगाय॥
यहु मर्दाना को बाना ना ओपन घोड़ देयँ पठवाय ७९
इतना सुनिकै मलखे बोले मानो कही बनाफरराय॥
सवन चिरैया ना घर छोंड़े ना वनिजरावनिजकोजाय ८०
अस गति नाहीं है पिरथी की तुम्हरे घोड़ लेयँ मँगवाय॥
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर बोले फेरि वचन समुझाय ८१
लिखी विधाता की मिटिद्देना सिरसा लौटिजाउ मलखान॥
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आल्हखण्ड। ३६०
