पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३६३

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आल्हखण्ड । ३६.-. कही हकीकति सब आल्हाकी धावन हाथ जोरिशिरनाय७. सुनिकै बात धावन मुख की मलखे घोड़ी लीन मँगाय ॥ मल्हना केरे फिरि महलन ते आल्हा कूच दीन करवाय ७१ बाजे डंका अहतंका के कनउज चले बनाफरराय । व्याकुल रैयत भै मोहबे के काहू धीर धरा ना जाय ७२ भोजन कीन्होकोउतादिनना सोवन रात दीन बिसराय ।। जहँ तहँ गाथा बघऊदन की घर घर रहे नारिनर गाय ७३ चढ़ा कबुतरी पर मलखाने मारग मिला तुरतही आय।। कुशल पूँछिकै आल्हा अकुर आपनिकुशलदीनबतलाय७४ जो कल्लु भाषा परिमालिक ने आल्हा सत्य सत्य गे गाय ।। मलखे बोले तब, आल्हा ते दोऊ हाथ जोरि शिरताय ७५ चलिक रहिये तुम सिरसा में करिहै काह चंदेलोराय ॥ इतना सुनिक ऊदन बोले दादा साँच देय बतलाय ७६ अव नहिं टिकि हैं हम सिरसामें चहु तुम कोटिनकरो उपाय ।। राज्य छोड़िके परिमालिक की जयचंद पुरीजायँहमभाय ७७ जव सुधिया नृप वातन के तव मन धीर होय अधिकाय ॥ बात के मारे जो मरि है ना मरिहै काह लात के घाय ७८ आज तो घोड़ा पिरथी मांगा' काल्हिकोतिरियालेत मँगाय॥ यहु मर्दाना को वाना ना -ओपन घोड़ देय पठवाय ७६ इतना सुनिक मलखे बोले मानो कही बनाफरराय ।। सवन चिरैया ना घर छोड़े नावनिजरावनिजकोजाय ८० अस गति नाहीं है पिरथी की तुम्हरे घोड़ लेय मँगवाय ।। इतना सुनिक आल्हा ठाकुर बोले फेरि बचन समुझाय ८१ लिखी विधाता की मिटिईना सिरसा लौटिजाउ मलखान ।।