पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३६४

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भाल्हानिकासी । ३६१ काह हकीकतिहे मानुष के सुख दुख देनहार भगवान ५२ बातें सुनिक ये आल्हा की मलखे ठीक लीन उहराय ॥ क्यड्ड समुझायेते मनिहें ना आल्हाउदयसिंह दोउ भाय ८३ मिला मेंट करि सब काहू सों मलखे कूच दीन करदाय ॥ जायकै पहुंचे सिरसागढ़ में महलन खबरि बताई जाय४ नदी बेतवा को उतरत मे दूनों भाय बनाफरराय॥ दाई दिनके फिरि अर्सा में झाबर गये बनाफर आय ८५ विजुली चमकै कउँधा लपकै कहुँ कहुँ मेघ रहे हहराय ॥ मेटुक बोलें चौगिर्दा ते वीछी साँएनकी अधिकाय ८६ न. मुरैला कहुँ जंगल में झीगुर कहूं करें झनकार ॥ किह्यो वसेरा तटयमुना के नाहर उदयसिंह त्यहिबार -७ वनी रसोई रजपूतन की सवहिन जे जीन ज्यवनार॥ भोर भुरहरे मुर्गा बोलत उतरे घाट कालपी क्यार ८८ तहते चलिकै परहुल नंचे दूनों माय बनाफदराय। दिनाद्वैक रहित्यहि मन में तहँते कूच दीन करवार१३ जायकै पहुँचे अस में जहँ पानीको काय॥ इन्दल बेंदुल दोउ प्यासे में इनके रहा न बीरा तहँ पानन का जो बनाफरमम॥ ताकि ल्यवरिषा इन्दल बेंदुल पानी लहुवाभाय २१५ श्राधा पानी आधी माटी ना तिन्हें लीन लुटदाय ॥ हाय मुसीवत अस परिगैहै सेहुकोअन्नदीनचिरकाय ११६ सुनवाँ रोई त्यहि समया में धुताफलहू दीन चलाय ॥ फाटे छाती नहिं द्यावलि के चि बापू रहे मचाय ११७ आल्हा सोचें त्यहि समया में ऊदन छप्पर दीन गिरा।