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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३६५

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आल्हखण्ड। ३५४

तेलि तँबोली कलवारन की दुर्गति भई तहांपर आय ११८
लैलै टेटुवा वनियां चलिभे मनमें बार बार पछिताय॥
हाय रुपैया बैरी ह्वैगा ह्याँ अवगई प्राणपर आय ११९
भा खलभल्ला औ हल्ला अति पहुंचे वहुत राज दरवार॥
रोय रोयकै बनियाॅ ब्वालैं राजन मानो कही हमार १२०
अजयपाल औ रतीभान मे एकते एक शूर सरदार॥
ऐसि दुर्दशा मैं कबहूंना जैसी भई आय यहिवार १२१
ऊदन आये मोहबे वाले तिन सब लीन बजारलुटाय॥
इतना सुनिकै जयचँद राजा लाखनिरानालीनबुलाय १२२
कहि समुझाया लखराना को तोपन आगिदेउ लगवाय॥
सुनिकै बातैं महराजा की लाखनिचलाशीशकोनाय १२३

सवैया॥


चर्खन में सब तोप चढ़ाय औ फौज तयार कियो लखराना।
बाजत डंक निशंक तहाँ औ यथा घन सावन को घहराना॥
बिज्जु छटासों कटा करने कहँ चम्कत खड्ग तहाँ मरदाना।
मौहर बाजत हाव किये ललिते यह भाव न जात बखाना१२४



भई तयारी समरभूमि की क्षत्रिनवांधि लीन हथियार॥
मीराताल्हन बनरस वाला पहुंचा तबै राजदरबार १२५
किह्यो बन्दगी महराजा को औ यह हाल कह्योसमुझाय॥
गरि मचायो नहिं कनउज में आल्हाऊदन लेउ बसाय १२६
मुर्चा फेरा इन पिरथीग द्वारे हाथी दीन पछार॥
बड़े लेड़ैया द्याबलिवाले इनते हारि गई तलवार १२७
जयचँद बोले तब सय्यद ते नाहर बनरस के सरदार॥