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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३६६

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आल्हानिकासी। ३६५

जौंरा भौंरा दुइ हाथिन को हमरे द्वारे देयँ पछार १२८
खता माफ करि हम आल्हाकै औ कनउज माँ लेंय बसाय॥
इतना सुनिकै सय्यद बोले धावन पठै लेउ बुलवाय १२९
तब महराजा कनउज वाला तुरतै धावन दीन पठाय॥
खबरि सुनाई त्यहि आल्हा को तुमको राजा रहे बुलाय १३०
मीरासय्यद तहँ बैठे हैं तिनहिन हमैं दीन पठवाय॥
इतना सुनिकै आल्हाऊदन दोऊ भाय बनाफरराय १३१
अपनी अपनी असवारिनचढ़ि तहँते कूच दीन करवाय॥
जौंरा भौंरा मस्ता हाथी जयचँद द्वारेदीन ढिलाय १३२
आल्हा ऊदन दोऊ भाई पहुंचे तुरत द्वारपर आय॥
जयचँद बोले तब आल्हाते मानो कही बनाफरराय १३३
हथी पछारो जो दारे पर तो तकसीर माफ ह्वैजाय॥
इतना सुनिकै उदयसिंहने मनमांसुमिरिशारदामाय १३४
ताकिकै मस्तक इक हाथी के भाला हना लहुरवा भाय॥
पैठिग भाला त्यहि हाथी के तुरतै गिरा पछारा खाय १३५
दन्त पकरिकै फिरि दुसरे के ऊदन दीन्ह्यो द्वार लिटाय॥
देखि बीरता उदयसिंह की जयचँद बहुतगयो हर्षाय १३६
बाँह पकरिकै फिरि आल्हा कै औ दरवार पहूँचा जाय॥
कीनि खातिरी भल ऊदन की खालीमहलदीनकरवाय १३७
लैकै लश्कर तव कनउज मां वसिगे तहां बनाफरराय॥
खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डागड़ानिशाकोआय १३८
परे आलसी खटिया तकि तकि सन्तन धुनी दीन परचाय॥
आशिर्वाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायण भाय १३९
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलौं रहैं चन्द औ सूर॥