पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३६९

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आल्ह खण्ड।३६८ साँची गाता अरु त्राता तुम धाता सृष्टि माँझ यहिकाल ॥ ललिले ऐसे नर दुर्बल को माता जानु आफ्नो बाल ५ छूटि सुमिरनी गै देवीकै लाखनिब्याहसुनोयहिकाल ॥ गंगाधर बूंदी का राजा ता घर व्याह होयगो हाल ६ अथ कथाप्रसंग ॥ कुसुम बेटी गंगाधरकी राजा बूंदी का सरदार॥ खेलत देखा सो बेटी का यौवन जानिपरा त्यहिवार १ लाग विधारन मन अपने मा बेटी ब्याहन के अनुसार।। नव अरु आठ दशै वर्पनमा ज्योतिपशास्त्रदीनअधिकार २ फिरि तौ गिनती ना कन्याकी यह मन कीन्ह्यो खूब विचार॥ म्वती जवाहिर दो बेटाथे तिनका बोलिलीन त्यहिवार ३ हाल बतावा मन अपने का राजा वार घरवर नीको जहँ तुम देखो त्यहिघर टीव एक मोहोवे तुम जायो ना तहॅपर रह जाति बनाफर की हीनी है हल्ला देश इतना कहिके महराजा ने सवियाँ सामा दीन मँगाय॥ चला जवाहिर तब बूंदी ते राजे वार वार शिरनाय ६ तीनिलाख को टीका लैकै दिल्लीशहर पहूँचा जाय। हाल जानिकै पृथीराज ने टीका तुरत दीन लौटाय ७ चौरीगढ़ में वीरशाह घर पहुंचा फेरि जवाहिरजाय ॥ सोऊ जादूकी शंका ते टीका तुरत दीन लौटाय : तहतेचलिके फिरिविसहिनगा जहॅपर बसें विसेनेग्य ।। लागि कचहरी गजराजा की शोभा कही बूत ना जाय सोने सिंहासनपर सोइत राजा विसहिन का सरदार।। माय॥ काय,५