पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३७

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३२ आल्ह खण्ड समय समइया की बातें हैं समया परे न बारम्बार ॥ समया परिंगा राजा नलपर खूटी हरा नौलखाहार ८५ रोज न मुर्चा कनउज हैहै रोज न चढ़ी पिथौरा ज्ञान ।। मारो मारो ओ - रजपूतो सुनिक वात हमारी कान ८६ इतनी सुनिकै सब क्षत्रिन ने अपनो मरण कीनअखत्यार ।। भाला बरछी दोउ दल छूटे औफिरिचलनलागितलवार८७ धरिधरि धमकैकड़ाबीन कोउ कोऊ मारें बैंचि कटार ॥ बड़ी लड़ाई क्षत्रिन, कीन्यो नदिया वही रक्तकीधारक जैसे ' फागुन फगुई खेलें तैसे लड़ें वीर चौहान ॥ मुहँ नहिं फेरै समरभूमि ते एकते एक बीर बलवान RE तबलों डोला संयोगिनि को पहुँचा तीस कोसपर जाय ॥ रिसहा राजा कनउज वाला बहुतक क्षत्री डरा नशाय ९० तबलों डोला संयोगिनि को आइयो रतीभान तहँ जाय ॥ बहुतक क्षत्री घायल कैकै सो पृथ्वीमाँ दीन स्ववाय ६१ कोगति धरणे रतीभानकै हमरे बूत कही ना जाय ।। फिरि फिॉर मार औ ललकार रणमाँ घोड़ा रहा नचाय ६२ रतीमान के तब मुर्चा में कोउ रजपूत न रोक पाएँ । सम्मुख आवै जो लड़ने को ताको मारै खेत खेलाय ६३ देखि लड़ाई रतीभान की हिरसिंह ठाकुर उठा रिसाय ॥ औ ललकारा रतीभान को ठाकुर खबरदार लैजाय १४ तबलों डोला संयोगिनि को दिल्ली शहर पहूँचा जाय ।। पाछे मारे औ ललकार यहु महराज कनौजीराय ६५ तीर अनेकन पिरथी मारे लाखन डारे शूर नशाय ।। बड़ा लड़ेंया यहुतीरन में ज्यहिका कही पिथौराराय ६६ .