पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३७२

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जाखनिका विवाह । ३७१ भई तयारी ह्याँ ब्याहे की फागुन मास पहूँचा आय ३४ न्यवत. पठावा सब राजन को राजा कनउज के सरदार।। पावत चिट्ठी के राजा सब कनजआयगये त्यहिबार ३५ तेल ओ मायन नहखुरआदिक ब्याहन कुँवाक्यार व्यवहार ।। नेग चार सब पूरन हगे लागे सजन शूर सरदार ३६ झीलमबखतर पहिरि सिपाहिन हाथम लई दाल तलवार ।। सुमिरि भवानीसुत गैणश को राजा जयचंद भये तयार ३७ भाल्हा बैठे पचशब्दापर ऊदन बेदुल पर असवार ।। गंगापाँवर कुड़हरि वाला मामा लाखनि का सरदार ३८ सूरज राजा परहुल वाला सोऊ बेगि भयो तय्यार ।। सिर्गा घोड़े की पीठी पर सय्यद बनरस का सरदार ३६ पूजि गोबर्द्धनि संदोहिनि अरु लाम्खुनि फूलमती त्यहिबार ।। सुमिरि भवानीतुत गणेश को पलकी उपर भये असवार ४० बाजे डबा अहतका के बारालाख फौज तैयार ॥ भागे हलका भा हाथिन का ..पाछे चलन लागि असंवार४१ चले सिपाही त्यहि पीछेसों रवाचले पवन की चाल । मारु मारके मौहरि बाजी बाजी हाव हाव करनाल ४२ गर्द उड़ानी अति मारग में लोपे अन्धकार सों भान ।। हाथी चिघरै घोड़ा हीसे घूमत जावे लाल निशान ४३ भयो कलाहल अति मारग में जंगल जीव गये थर्राय ।। - बनइस दिन के फिरि असी में बूंदी पास गये नगच्याय ४४ चार कोस जब बूंदी रहिगे जयचंद तम्बू दीन गड़ाय ।। गड़िगे तम्बू सत्र राजन के सब रँग ध्वजा रहे फहराय ४५ भपने अपने सब तम्बुन में राजा नृत्य रहे करवाय ।।