गमकैं तबला सब तम्बुन में सावन यथा मेघ घहरायँ ४६
ओढ़े सारी काशमीर की धारी शिरन सोइनी भाय॥
बनी मोहनी अति मूरति है सूरति बरणि नहीं कछुजाय ४७
ऊदन बोले तब रूपन ते ऐपनवारी दे पहुँचाय॥
रूपनवारी तब बोलत भा दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ४८
ऐपनवारी बारी लैकै आपन मूड़ कटावै जाय॥
आये बारी बहु कनउज के ऐपनवारी देउ पठाय ४९
बातैं सुनिकै ये रूपन की बोला फेरि बनाफरराय॥
बाना राखै रजपूती का बारी कौन बतावै भाय ५०
इतना सुनिकै रूपन बोले बेंदुल घोड़ देउ मँगवाय॥
सुनिकै बातैं उदयसिंह ने बेंदुल बाग दीन पकराय ५१
ऐपनवारी वारी लैकै बेंदुल उपर भयो असवार॥
सवापहर के फिरि अर्सा मा पहुँचाजाय नृपति के द्वार ५२
सवैया॥
देखिकै रूपनि को दरवानि कहा इमि बानि सो बेगि सुनाई।
कौनसो देश बसौ क्यहिग्राम औ कौनसोकाज गये तुम आई॥
जायकहौं नृपसों चलिकै भलिकै निजहाल जो देउ बताई।
बानि सुन्यो ललिते जब रूपनि बोलि उठ्यो तब मोदबढ़ाई ५३



ऐपनवारी बारी लावा राजै खबरि सुनावो जाय॥
हमैं पठावा आल्हा ऊदन ब्याहनअये कनौजीराय ५४
इतना सुनिकै द्वारपाल चलि राजै खवरि दीन बतलाय॥
सुनिके बात द्वारपाल की राजा गये दुवारे आय ५५
द्वारे आगे जब गंगाधर रूपन बोला शीश नवाय॥