सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
लखनिका बिवाह। ३७३

ब्याहन आये लखरानाको अगुवाकार बनाफरराय ५६
आल्हा ऊदन के बारीहन रूपन जानो नाम हमार॥
ऐपनवारी लै आयन है पैंपभदिँवें नेग आपके द्वार ५७
कीरति गावत रूपनवारी जावें आल्हाके दरबार॥
इतना सुनिकै राजा बोले चहिये नेग काह तब द्वार ५८
रूपन बोले महराजाते चाहैं यही आपके द्वार॥
दुइघंटाभरि चो सिरोही द्वारे वह रक्तकी धार ५९
कीरति गावत रूपन जावे होवैँ जगमें नाम तुम्हार॥
वारी आवा बघऊदन का द्वारे कठिन कीन तलवार ६०
इतना सुनिकै गंगाधर ने फाटक बन्द लीन करवाय॥
जाय न पावै रूपन बारी आरी होय लोहके घाय ६१
इतना सुनिकै रजपूतन ने अपनी खैंचिलीन तलवार॥
रूपन बारी बेंदुल परते गरूई हाँक दीन ललकार ६२
प्राणपियारे ज्यहि होवैं ना सोई लड़ै आय सरदार॥
धावा कीन्ह्यो रजपूतनने बेंदुल भली मचाई रार ६३
टापन मारै रजपूतन का काहू दाँतन लेय चबाय॥
जब मनपावै सो रूपनका तड़पत उड़ा दूरलगजाय ६४
कागति बरणौं तहँ रूपनकै दुनों हाथ करै तलवार॥
बड़े लड़या बूँदीवाले तेऊ हनैं आपनी वार ६५
रूपन दुइ दश पन्द्रह वीसक तीसक गिरिगे समरभूमि मैदान॥
देखि तमाशा गंगाधर जी दारे बहुत भये हैरान ६६
क्रोधित हैके महराजा ने भाप खैंचिलीन तलवार॥
एँड़ लगायो तब रूपन ने घोड़ा चला गयो वापार ६७
मारु मारु औ हल्ला करिकै पाछे चले बहुत सरदार॥