पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३७५

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भारहखण्ड । ३७५ उड़ा वैदुला त्यहि समया मा तम्बुनपास गयो असवार ६८ क्षत्री . लोदे बूंदी वाले बैठे आय राज दरखार ॥ रूपन बारी को देखत खन बोला उदयसिंह सरदार ६६ कैसी गुजरी कहु बूंदी में रूपन रङ्ग विरङ्गा ज्वान ।। इतना सुनिकै रूपन बोले भइया भलो कीन मैदान ७० नामी ठाकुर का बारी है जान्यो सबै राजदरबार ॥ दुइ घण्टा भरि चली सिरोही द्वारे वही रक्तकी धार ७१ मातु शारदा तुम्हरी बशिमा लाला देशराज के लाल॥ सरवर तुम्हरी का दुनिया मा दूसर नहीं आज नरपाल ७२ सुनो हकीकति अब बूंदी के भारी लोग राजदरवार। रूपन बारी की चरचा का खरचाहोनलाग त्यहिवार ७३ म्वती जवाहिर दोउ पुत्रन को राजा पास लीन बैठाय ॥ कही हकीकति सब ऊदन की पुत्रन वार वार समुझाय ७४ जाति बनाफर की हीनी है अगुवाकार भये सो आय ।। कैसे · व्याहव हम बेटीका इसि हैं जातिपातिकेभाय ७५ लड़िके जितिवे नहिं ऊदनते यहहू साँच दीन बतलाय ।। धोखा देके लखराना का अब हम कैदलय करवाय ७६ तौ तौ इज्जत हमरी रहिह नहिं सब जैहैं काम नशाय ॥ तुम अब जावो त्यहि तम्बूमा, जहँ पर बैठ कनोजीराय ७७ समय आयगा अब भौरिनका इकलो लड़का देउ पठाय ।। देश हमारे यह रीती है कहियो बारंवार समुझाय ७८ इतना सुनिके चला जवाहिर चारो नेगी संग लिवाय॥ जहाँ कनौजी का तम्बूथा पहुँचा तहाँ जवाहिरआय ७६ कही हकीकति सत्र राजा सों दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।