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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३७५

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आल्हखण्ड। ३७४

उड़ा वेंदुला त्यहि समया मा तम्बुनपास गयो असवार ६८
क्षत्री लौटे बूँदी वाले बैठे आय राज दरवार॥
रूपन बारी को देखत खन बोला उदयसिंह सरदार ६९
कैसी गुजरी कहु बूँदी में रूपन रङ्ग विरङ्गा ज्वान॥
इतना सुनिकै रूपन बोले भइया भलो कीन मैदान ७०
नामी ठाकुर का बारी है जान्यो सबै राजदरवार॥
दुइ घण्टा भरि चली सिरोही द्वारे वही रक्तकी धार ७१
मातु शारदा तुम्हरी बशिमा लाला देशराज के लाल॥
सरवर तुम्हरी का दुनिया मा दूसर नहीं आज नरपाल ७२
सुनो हकीकति अब बूँदी कै भारी लोग राजदरवार॥
रूपन बारी की चरचा का खरचाहोनलाग त्यहिवार ७३
म्वती जवाहिर दोउ पुत्रन को राजा पास लीन बैठाय॥
कही हकीकति सब ऊदन की पुत्रन बार बार समुझाय ७४
जाति बनाफर की हीनी है अगुवाकार भये सो आय॥
कैसे ब्याहव हम बेटीका हँसि हैं जातिपांतिकेभाय ७५
लड़िकै जितिवे नहिं ऊदनते यहहू साँच दीन बतलाय॥
धोखा दैकै लखराना का अब हम कैदलयँ करवाय ७६
तौ तौ इज्जत हमरी रहिहै नहिं सब जैहैं काम नशाय॥
तुम अब जावो त्यहि तम्बूमा जहँ पर बैठ कनोजीराय ७७
समय आयगा अब भौंरिनका इकलो लड़का देउ पठाय॥
देश हमारे यह रीती है कहियो बारबार समुझाय ७८
इतना सुनिकै चला जवाहिर चारो नेगी संग लिवाय॥
जहाँ कनौजी का तम्बूथा पहुँचा तहाँ जवाहिरआय ७९
कही हकीकति सब राजा सों दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥