मारे मारे तलवारिन के मचिगा घोर शीर घमसानहर ९२
उदन मारैं ज्यहि क्षत्री को सो मुहभरा तुरत गिरिजाय॥
पास न जावै कोउ ऊरन के रणमा बढ़ा बनाफरराय ९३
कागति बरणौं तह लाखनि कै दूनों हाथ करै तलवार॥
मारे मारे तलवारिन के आँगन वही रक्तकी धार ९४
म्वती जवाहिर दूनों भाई आँगन खूबकीन मैदान॥
लड़ै बहादुर भीषमवाला देवा मैनपुरी चौहान ९५
घायल ह्वैकै ग्यारह नेगी आँगन गिरे पछाराखाय॥
लाखनि ऊदन त्यहि समयामा चालिस क्षत्री दीनगिराय ९६
तबै जवाहिर सम्मुख आवा गरूई हाँक देत ललकार॥
काह सिपाहिन का मारो तुम हमरे साथ करौ तलवार ९७
इतना सुनिकै लाखनि ऊदन सम्मुख चले तुरतही धाय॥
आगे पीछे चौगिर्दा ते परिगे गाँस फाँसमें आय ९८
लाखनि ऊदन दोऊ ठाकुर मोती कैदलीन करवाय॥
घैहानेगी जे आँगन में तिनहुन तुरतलीनबँधवाय ९९
लाखनि ऊदन दोउ क्षत्रिनको राजै खंदक दीनडराय॥
यह सुधिपाई जब मालिनिने कुसुमा पास पहूँची जाय १००
हाल बतायो त्यहि बेटी को मालिनि बार बार समुझाय॥
ब्याहन तुमका लाखनि आये राजै खन्दक दीन डराय १०१
देश देश में जब फिरि आये टीका लीन कनौजीराय॥
ऐस मुनासिब नहिं राजाको जोअबदीन्हेनिजूझमचाय १०२
गली गली में यह चरचाहै नीकि न कीन बात महराज॥
रूप उजागर सबगुण आगर खन्दक परे तुम्हारेकाज १०३
इतना सुनिकै कुसुमा बेटी मनमें बारबार पछिताय॥
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आल्हखण्ड। ३७६
