सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३
लाखनिका बिवाह। ३७९

शूर सिपाही सम्मुख रहिगे कायरछोंड़िभागिहथियार १२८
कटि कटि मूड़ गिरैं धरणीमा उठि उठि रुण्ड करैं तलवार॥
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औरुण्ड़नके लाग पहार १२९
सात कोस के तहँ गिर्द्दा मा कौवा गीध रहे मड़राय॥
घैहा करहैं समरभूमि मा दैया बापू रहे मचाय १३०
हाय रुपैया बैरी ह्वैगे हमरे गई प्राणपर आय॥
सात रुपैया के कारण ते छूटे लोग कुटुम औभाय १३१
तहिले बिरिया भै संध्या कै तब फिरि मारु बन्द ह्वैजाय॥
जीवे लायक जितने घैहा तिनकीलोथिलीनउठवाय १३२
ढईलाख दल कनउज वाला बूँदी डेढ़लाख सरदार॥
इतने जूझे दुहुँ तरफा ते करिकरि मारुतहाँपरयार १३३
आल्हा आये जब तम्बू मा आसनअलगलीनबिछवाय॥
श्वास चढ़ाई फिरि ऊपर का शारदसुमिरिबनाफरराय १३४
बिनती कीन्ही भल शारद की आल्हा बार बार शिरनाय॥
तव अवलम्बा जगदम्बा है दूसर करि है कौन सहाय १३५
बिनती करिकै आल्हा ठाकुर सोये सेज आपनी जाय॥
देबी शारदा मइहरवाली निशिमास्वपनदिखायोआय १३६
मलखे ब्रह्मा को बुलवाओ ह्वैहै जीति बनाफरराय॥
स्वपन देखिकै आल्हा ठाकुर प्रातःकाल उठे हर्षाय १३७
लिखिकै चिट्ठी मलखाने को धावन हाथ दीन पठवाय॥
चढ़ा साँड़िया मा धावन तब सिरसागढ़ै पहूँचाजाय १३८
चिट्ठी दीन्ही मलखाने को धावन बार बार शिरनाय॥
पढ़िकै चिट्ठी मलखेठाकुर औ यहबोले बचनसुनाय १३९
हम समुझावा भल ऊदन का सिरसा बसो बनाफरराय॥