पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३८१

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आल्हखण्ड । ३८. कहा न माना आल्हा ऊदन खन्दकपरे लहुरवाभाय १४० मनते हमरे यह आवति है की वृंदी का जाय बलाय॥ जैसो कीन्हेनि तस फलपायनि दूनोंभाय बनाफरराय १४१ करें तयारी नहिं यूँदी की तवहूं ठीक नहीं ठहराय॥ इतना कहिकै मलखेगकुर फोजनहुकुमदीनकरवाय १४२ करो तयारी सब बूंदी की खन्दक परा लहुरवाभाय ।। इतना कहिके मलखेठाकुर अपने महल पहूँचेजाय १४३ पदिक चिट्ठी गजमोतिनि को मलखे हाल दीन समुझाय ॥ हम ना जैबे अब बूंदी का प्यारी साँच दीन वतलाय१४४ इतना सुनिकै प्यारी बोली दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥ आज साँकरा बघऊदन का स्वामीगाढ़े होउ सहाय १४५ बिना सहायक अब दादा को स्वामीदुःख होय अधिकाय ॥ आज साँकरा है दादापर यहुदिनपरीरोजना आय १४६ व्याना सहिवे द्यवरानिन का होई पीर रोज़ अधिकार । धर्म विहीनी हीनी हकै जीनो जन्मजन्मधिक्कार १४७ धर्म न रहे जब देही मा करि है कौन्दकाहि उपकार ॥ धर्म निशाना मर्दाना है अर्जुनसकन्दीनोकसरदार १४८ सारथि कीन्ह्यो नारायण जे घुइ महराज बुद्धीद्वारा करि दिखलावा तसकेकाज११. करौं किहानी जो पूरी मैं । è सुनी किहानी जो विप्रन ते सोई कहाँ' सत्य भर्तार १५० इवे दवाई - दुखदाई यह नींवी हरे अनेकन रोग। ॥ जो कोउ पीवे चंगा होवे याको केस नीक संयोग १५१ धर्म दवाइन के पीने मा स्वामिन सत्य सत्य भारोग ।। सन्ना बड़ा ॥