पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३८३

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भाल्हखण्ड। ३८२ घोड़ी कबुतरी की पाठीपर मलखे सिरसाका सरदार १६४ बाजे डंका अहतंका के वका चले शूर त्यहि बार ॥ शङ्का फंका करि डंका तहे बाजे घोरशोर ललकार १६५ रहा कलङ्का नहिं देही माँ ऐसे कहत चलें सक्यार ।। पंद्रादिनका धावा करिकै बूंदी निकट गये सरदार १६६ झील देखिकै मलखाने ने तम्बू तहाँ दीन गड़वाय ॥ लाले पीले नीले काले सवरेंगध्वजा रहे फहराय १६७ खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय ॥ तारागण कछु चमकन लागे पक्षी चले वसेरन धाय १६८ परे आलसी खटिया तकि तकि संतन धुनी दीन परचाय ॥ भस्म लगायो सब अंगन में ध्यायो चरितपुरातनगाय१६६ शिवा रमा ब्रह्माणी पति के मनमें चरित रहे सुलगाय॥ बड़े यशस्वी पितु अपने के दोऊचरणकमलकोध्याय १७० करों तरंग यहां सों पूरण दोऊ गणपतिचरण मनाय॥ राम रमा मिलि दर्शन देबें ले आपन मोहिं बनाय १७१ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवलकिशोरात्मजवाबूप्रयाग नारायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामपदेशान्तर्गत पंढरीकलां निवासि मिश्रशोद्भवबुधकृपाशङ्करसूनु पं० ललिताप्रसादकत मलखान बदाईवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १ ॥ सवैया॥ सत्य वेद पुराण सबै मति एक असत्य यहै लखिपावा। मतिही के असत्य असत्य सबै यह सत्यहि २ सत्य बताया। बेद पुराणन भूलनहीं यह झूल असत्य मती ठहरावा । ललिते मति सत्यासत्य निवारण वेद पुराणन ने दर्शावा ?