घोड़ी कबुतरी की पीठीपर मलखे सिरसाका सरदार १६४
बाजे डंका अहतंका के वंका चले शूर त्यहि बार॥
शङ्का फंका करि डंका तहॅ बाजे घोर शोर ललकार १६५
रहा कलङ्का नहिं देही माँ ऐसे कहत चलैं सबयार॥
पंद्रादिनका धावा करिकै बूँदी निकट गये सरदार १६६
झील देखिकै मलखाने ने तम्बू तहाँ दीन गड़वाय॥
लाले पीले नीले काले सवरॅग ध्वजा रहे फहराय १६७
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण कछु चमकन लागे पक्षी चले बसेरन धाय १६८
परे आलसी खटिया तकि तकि संतन धुनी दीन परचाय॥
भस्म लगायो सब अंगन में ध्यायो चरितपुरातनगाय १६९
शिवा रमा ब्रह्माणी पति के मनमें चरित रहे सुलगाय॥
बड़े यशस्वी पितु अपने के दोऊचरणकमलकोध्याय १७०
करों तरंग यहां सों पूरण दोऊ गणपतिचरण मनाय॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं लेवैं आपन मोहिं बनाय १७१
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवलकिशोरात्मजबाबूप्रयाग
नारायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामपदेशान्तर्गत पँडरीकलां निवासि
मिश्रबंशोद्भवबुधकृपाशङ्करसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत मलखान
बड़ाईवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १ ॥
सवैया॥
सत्यहैं बेद पुराण सबै मति एक असत्य यहै लखिपावा।
मतिही के असत्य असत्य सबै यह सत्यहि २ सत्य बतावा॥
बेद पुराणन भूलनहीं यह झूल असत्य मती ठहरावा ।
ललिते मति सत्यासत्य निवारण बेद पुराणन ने दर्शावा १