सुमिरन॥
बेदन ध्यावों सामबेद को बिप्रन परशुराम महराज॥
क्षत्रिन ध्यावों रामकृष्ण को बैश्यन नन्दभये शिरताज १
शूद्रन ध्यावों मैं निषाद को कीशन पवनतनय बलवान॥
ईशन ध्यावों शिवशङ्कर को शीशनबढ़ा दशानन ज्वान २
ध्याय नदीशनमें बड़वानल पक्षिन बैनतेय महराज॥
ध्याय गिरीशन में हिमपर्वत नारिन जनकसुता शिरताज ३
क्वाँरिन ध्यावैं हम राधाको राखैं सदा हमारी लाज॥
परम पियारी यदुनन्दन की हमरी माननीय शिरताज ४
सबै पुस्तकन में दुर्गा जी अबहूं बिप्रन की रखवार॥
छूटि सुमिरनी गै ह्याँते अब बूँदी हाल सुनो यहिबार ५
अथ कथाप्रसंग॥
देखिकै फौजै मलखाने की बोला तुरत कनौजीराय॥
फौजै आई हैं बूँदी ते आल्हा देख भीर अधिकाय १
चिट्ठी पठई तुम सिरसा को आये नहीं वीर मलखान॥
कैसी करिहौ यहि समया में आल्हा समरभूमि मैदान २
मुनिकै बातैं महराजा की आल्हा बोले शीश नवाय॥
मुर्चा बन्दी अब करवावो चर्खन तोप देउ चढ़वाय ३
तबलग धावन सिरसावाला आल्हा फौज पहूंचा आय॥
शीश नायकै सो आल्हा को मलखे आवन दीन बताय ४
दीन इनामै त्यहि धावन को ब्रह्मा मलखे लीन बुलाय॥
खबरि पायकै सो आल्हा की दूनों गये तहाँ पर आय ५
बड़ी खातिरी जैचँद कीन्ह्यो अपने पास लीन बैठाय॥
खबरि वताई सब बूँदी की जयचँद बार बार पछिताय ६