पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३८४

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लाखनिका विवाह ।३८३ सुमिरन ॥ बेदन ध्यावों सामवेद को विप्रनः परशुराम महराज ।। क्षत्रिन ध्यावों रामकृष्ण को वैश्यन नन्दभये शिरताज १ शूदन ध्यावों में निषाद को कीशन पवनतनय बलवान । ईशन ध्यावों शिवशङ्कर को शीशनबढ़ा दशानन ज्यान २ ध्याय नदीशनमें बड़ानल पक्षिन बैनतेय महराज ॥ ध्याय गिरीशन में हिमपर्वत नारिन जनकसुता शिरताज ३ कॉरिन ध्या हम राधाको राखें सदा हमारी लाज ॥ परम पियारी यदुनन्दन की हमरी माननीय शिरताज : सबै पुस्तकन में दुर्गा जी अवहूं विप्रन की रखवार । -बूटि सुमिरनी गै ह्याँते अब बूंदी हाल सुनो यहिबार ५ अथ कथामसंग ।। देखिकै फौजै मलखाने की बोला तुरत कनौजीराय ॥ फौजें आई हैं बूंदी ते आल्हा देख भीर अधिकाय ? चिट्ठी पठई तुम सिरसा को आये नहीं वीर मलखान ॥ कैसी करिही यहि समया में आल्हा समरभूमि मैदान २ मुनिकै बातें महराजा की आल्हा बोले शीश नवाय ।। मुर्चा बन्दी अब करखावो चर्खन तोप देउ चढ़वाय ३ तबलग धावन सिरसावाला आल्हा फौज पहूंचा आय ।। शीश नायकै सो आल्हा को मलखे आवन दीन बताय ४ दीन इनामै त्यहि धावन को ब्रह्मा मलखे लीन वुलाय ।। खबरि पायकै सो आल्हा की दूनों गये तहाँ पर आय ५ बड़ी खातिरी जै चॅद कीन्यो अपने पास लीन बैठाय ।। खबरि वताई सब बूंदी की जयवद बार बार पलिताय ६