सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८
आल्हखण्ड। ३८४

मलखे बोले तब राजा ते साँची सुनो कनौजीराय॥
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो दिशा लेउ ध्यरवाय ७
तुमतो लड़ियो उत्तर दिशिको दक्षिण समर करब हम आय॥
कछुदल पठवो पूरब पश्चिम बूँदी शहर लेउ घिरपाय ८
इतना कहिकै मलखे ब्रह्मा फौजन फेरि पहूंचे आय॥
बाजे डंका कनवजिया के हाहाकार शब्दगा छाय ९
बिनही डंका के मलखाने दक्षिण दिशा पहूंचे जाय॥
म्वती जवाहिर उत्तर दिशिमाँ लैकै फौजगयो फिरिआय १०
तोपैं धरिगइँ फिरि चर्खन में तिनमें वत्तीदईं लगाय॥
छूटे गोला हाहाकारी धुवनारहा सरगमें छाय ११
लागै गोला ज्यहि क्षत्री के मानो गिरह कबूतरखाय॥
गोला लागै ज्यहि घोड़ाके आधे सरगलिहे मड़राय १२
लागै गोला ज्यहि हाथी के चुप्पे देवै भूमि बिठाय॥
जौने ऊंटके गोला लागै सो मुहभरा तुरतगिरिजाय १३
अररर अररर गोला छूटैं जैसे प्रलय मेघ घहराय॥
जौने रथमाँ गोला लागै पहियाधुरीसहितउड़िजाय १४
बड़ी दुर्दशा में तोपन में तब फिरि मारुनन्द ह्वैजाय॥
दुनो गोल आगे का बढिगे मुर्चा परा बरोबरि आय १५
कल्ला भिडिगे असवारन के घोड़न भिड़ी रानमें रान॥
सूंड़ि लपेटा हाथी भिड़िगे लाग्यो होन घोर घमसान १६
कउॅधालपकनिबिजुलीचमकनि रणमॉ चमाचम्म तलवार॥
झल्झल्झल्झल् छूरीझलकैं भारी ढालनकी ठनकार १७
धम् धम् धम् धम् बजैं नगारा मारा मारा परै सुनाय॥
सन् सन् सन् सन् गोली सनकैं तेगा मन मन्न मन्नाय १८