पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३८५

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आरहखण्टा३८१ मलखे बोले तब राजा ते साँची सुनो कनोजीराय ।। उत्तर दक्षिणं पूरख पश्चिम चारो दिशा लेट ध्यरवाय ७ तुमतो लड़ियो उत्तर दिशिको दक्षिण समर करव हम आय ।। कछुदल पठवो पूरब पश्चिम बूंदी शहर लेउ घिरपाय ८ इतना कहिके मलखे ब्रह्मा फोजन फेरि पहूंचे आय ॥ बाजे ढंका कनवजिया के हाहाकार शब्दगा छाय। बिनही डंका के मलखाने दक्षिण दिशा पहूंचे जाय ।। म्वती जवाहिर उत्तर दिशिमाँ लकै फौजंगयो फिरिआय १० तो धरिगई फिरि चर्खन में तिनमें वत्तीदई लगाय ।। छूटे गोला हाहाकारी धुवनारहा सरगमें छाय ११ लागे गोला ज्यहि खत्री के मानो गिरह कबूतरखाय॥ गोला लागे ज्यहि घोड़ाके आधे सरगलिहे मड़राय १२ लागै गोला ज्यहि हाथी के जुप्पे देवे भूमि विडाय ।। जौने ऊंटके गोला लागै सो मुहभरा तुरतगिरिजाय १३ अररर अरर गोला छूटें जैसे प्रलय मेघ घहराय ।। जौने रथमाँ गोला लागे पहियाधुरीसहितउड़िजाय १४ बड़ी दुर्दशा में तोपन में तब फिरि मारुनन्द लैजाय ।। दुनो गोल आगे का बढिगे मुर्चा परा बरोबरि आय १५ कल्ला भिडिगे असवारन के घोड़न भिड़ी रानमें रान ।। इंडि लपेटा हाथी भिडिगे लाग्यो होन घोर घमसान १६ कउँधालपकनिविजुलीचमकनि रणमॉ चमाचम्म तलवार।। झल्झल्झलझल्छूरीझलके भारी दालनकी ठनकार १७ धम् धम् धम् धम् वजै नगारा मारा मारा परै सुनाय॥ न सन् सन् सन् गोली सन तेगा मन मन्न मन्नाय १८