मीराताल्हन बनरस वाला सिर्गा घोड़े पर असवार॥
अल्ला अल्ला औ बिसमिल्ला करिकै खूब मचाई रार ३१
झुके सिपाही बूँदी वाले दोऊ हाथ करैं तलवार॥
बड़े लड़ैया मुहबेवाले एकते एक शूर सरदार ३२
येऊ मारैं औ ललकारैं हार नहीं तहाँ पर ज्वान॥
छोड़ि आसरा जिंदगानी का क्षत्रिन खून कीन मैदान ३३
दूनों दिशि की तहँ मारुन माँ क्षत्री बूँदी के हैरान॥
तीनि लाख बूँदीके ठाकुर ह्वैगे समर भूमि वैरान ३४
म्वती जवाहिर त्यहिसमया माँ दूनों भाय गये घबड़ाय॥
मलखे ठाकुर त्यहि औसर माँ तिनका कैदलीन करवाय ३५
भागि सिपाही अरभ्वारातब अपने अपने लिहे परान॥
जीति के डंका तब बजवाये नाहर समरधनी मलखान ३६
राजा जयचँद के तम्बू माँ पहुँचे सबै शूर सरदार॥
को गति बरणै त्यहि समयाकै भारी लाग राजदरबार ३७
जितने घायल अपनी दिशिके सबको तुरतलीन उठवाय॥
मलहम पट्टी तिन क्षत्रिन के घायन ऊपर दीन कराय ३८
सुनी हकीकति जब गंगाधर मनमाँ बारबार पछिताय॥
मेलछांडिकै त्यहि औसर माँ और न कछू ठीक ठहराय ३९
लिखिकै चिट्ठीत्यहि समयामाँ जयचँद पास दीनपठवाय॥
कैदी छोंड़ो दोउ पुत्रनको भाँवरि तुरत लेट करवाय ४०
जहँना तम्बू महराजा का धावन तहाॅ पहुँचा आय॥
चिट्ठी दीन्ह्यो महराजाको दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ४१
पढ़िकै चिट्ठी जयचँदराजा तुरतै सबका दीनसुनाय॥
सम्मत सबकै तब याही भै कैदी देउ पुत्र छुड़वाय ४२
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आल्हखण्ड। २८६
