पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३८७

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आल्हखण्ड। २८६ मीराताल्हन वनरस वाला सिर्गा घोड़े पर असवार ॥ अल्ला अल्ला औ विसमिल्ला करिके खूब मचाई रार ३१ झुके सिपाही बूंदी वाले दोऊ हाथ करें तलवार ॥ बड़े लडैया मुहवेवाले एकते एक शूर सरदार ३२ येऊ मारैं औ ललकारें हार नहीं तहाँ पर ज्वान ।। छोड़ि आसरा जिंदगानी का क्षत्रिन खून कीन मैदान ३३ दूनों दिशि की तहँ मारुन माँ क्षत्री बूंदी के हैरान ।। तीनि लाख बूंदीके ठाकुर द्वैगे समर भूमि वैरान ३४ म्वती जवाहिर त्यहिसमया माँ दूनों भाय गये घबड़ाय ।। मलखे ठाकुर त्यहि औसर माँ तिनका कैदलीन करवाय ३५ भागि सिपाही अरमवारातब अपने अपने लिहे परान ॥ जीति के डंका तब बजवाये नाहर समरधनी मलखान ३६ राजा जयचंद के तम्बू माँ पहुँचे सबै शूर सरदार। को गति बरणे त्यहि समयाकै भारी लाग राजदरवार ३७ जितने घायल अपनी दिशिके सबको तुरतलीन उठवाय ।। मलहम पट्टी तिन क्षत्रिन के घायन ऊपर दीन कराय ३८ सुनी हकीकति जब गंगाधर मनमाँ बारबार पछिताय ।। मेलछांडिकै त्यहि औसर माँ और न कछू ठीक ठहराय ३९ लिखिकै चिट्ठीत्यहि समयामाँ. जयचंद पात दीनपठवाय ॥ कैदी छोड़ो दोउ पुत्रनको पाँचरि तुरन लेट करवाय ४० जहँना तम्बू महराजा का धावन तहाँ पहुँचा आय॥ चिट्ठी दीन्यो महराजाको दोऊ हाथ जोरिशिस्नाय ४१ पढ़िकै चिट्ठी जयचंदराजा तुरतै सबका दीनसुनाय ॥ सम्मत सबकै तब याही भै कैदी देउ पुत्र छुड़वाय ४२ .