पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३९

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आल्हखण्ड। कान्ह कुँवरहू अतिकोपित मा यहु रजपूत वीर चौहान ॥ लीन्हे भाला नागदवनि का क्षत्रिनमारिकीन खरिहान १०७ औ ललकारा रतीभान का ठाकुर खवरदार द्वैजाय ।। यह कहि मारा तलवारी का सोपे लैगा वार बचाय १०८ आपो मारा तलवारी को परिगे कान्ह कुँवर शिरजाय ।। ककरी ऐसी खपरी फाटी शिरवांधितहारहिजाय १०९ बँचि सिरोही को कम्मर सों मारा रतीभान को धाय ।। रतीमान फाटक पर गिरिगे गिरिगोकान्हकुँवरमहराय ११० दोऊ जूझे जब फाटक में डोला अटा महल में जाय ॥ उतरिकै डोला सों संयोगिनि बैठी रङ्ग महल में आय १११ चंद कवीश्वर फिरि जल्दी सों पहुँचा जहां चंदेलाराय ॥ औ फिरि बोला हाथ जोरिक ओमद्दराज कनौजीराय ११२ लाखन जुझे दिल्ली वाले लाखन कनउज के सरदार ॥ बड़ी लड़ाई उदल कीन्ह्यो ज्यहिका रहान वारा पार ११३ बचा पिथौरा अब इकलो है ज्यहिका राखिलीन भगवान। त्यहि नहिं मारो महराजा तुम मानों सत्य वचन परमान ११४ लौटि कनौजे जो चलि जइही कीरति बनी रही संसार ।। हारि तुम्हारी कोउ गाईना राजा कनउज के सरदार ११५ कनउज तेनी औ दिल्ली लों कीन्यो घोर शोर घमसान ॥ अस कोउ क्षत्री मैं देखों ना जोफिरिकरैसमरअभिमान ११६ चंद कवीश्वर की बात सुनि बोला कनउज का महराज ।। कहा तुम्हारो हम यख ना मानोसत्यवचनकबिराज ११७ बड़ो भरोसो तुम हमरो करि आयो मिलन हमारे पास ॥ कहा तुम्हारो जो मानेंना तोफिरिजावोभापनिराश ११८ -