ते मनमाँझ बिचारकरैं औ धरैं मनमें प्रभुकी प्रभुताई॥
त्यागत झूँठ प्रपञ्च सबै औ जवै मन भासत हैं रघुराई।
नाशत पाप सबै ललिते फलिते जगधर्म कि बेलि सदाई ६३
सोई मन्तर मन अन्तर धरि यन्तर धर्म बनाफरराय॥
बड़ी बड़ाई कनउज पायो कीरति रही आजलों छाय ६४
बिपदा सहिकै यहि दुनियामा त्यागा धर्म नहीं कहुँभाय॥
तासों बेली यह फैली अति सुन्दर धर्म रूप जलपाय ६५
अधरम बेली दुरयोधन की छैलिकै लीन जगतकोछाय॥
तैसे रावण कंसासुरहू बाढ़यो धनै बलै अधिकाय ६६
रीछ बँदरवा ग्वालन बालन दूनन दीन्ह्यो तुरत नशाय॥
तासों चहिये यहि दुनियामाँ नितप्रतिनवतनवत नैजाय ६७
धन बल बाढ़ै त्यहि दुनियामाँ कीरति जाय धरामें छाय॥
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडागड़ा निशाकोआय ६८
तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय॥
परे आलसी खटिया तकितकि घोंघों कण्ठ रहे घर्राय ६९
आशिर्बाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय॥
हुकुम तुम्हारो जो पावत ना ललिते कहतकथाकस गाय७०
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौं सदा भरपूर ७१
माथ नवावों पितु अपने को जिनबल माथ भई यह पार॥
जैसे सेयो बालापन में तैसे सदा होउ रखवार ७२
जल थल जन्मों चहु पहाड़ में स्वामी होयँ राम भगवान॥
यह वर पावैं ललिते पण्डित खण्डित होय न हमरी वान ७३