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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३९३

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आल्हखण्ड। ३९२

कीरति तुम्हरी जो कोउ गावै पावै वहै चहै जो जीय ४
निरभय होवै घर बाहर सों केवल करै तुम्हारी आश॥
बन्धन छूटैं सब दुनियाँ के यमकी परै गले नहिं पाश ५
छूटि सुमिरनी गै ह्याँते अब सुनिये गाँजर केर हवाल॥
साजिकै फौजै ऊदन चलि हैं लड़ि हैं बड़े बड़े नरपाल ६

अथ कथाप्रसंग॥


जैचन्द राजा कनउज वाला आला सकलजगत सरनाम॥
लागि कचहरी त्यहि राजा कै सोहै सोन सरिस त्यहिधाम १
को गति बरणै त्यहि मन्दिरकै ज्यहिमाँ भरी लाग दर्बार॥
आस पास माँ राजा सोहैं बीचम कनउज का सरदार २
बनासिंहासन है सोने का हीरा पन्ना करैं वहार॥
तामें बैठे जैचन्द बोले सुनिये सकल शूर सरदार ३
बारह बरसन का अरसा भा पैसा मिला न गाँजर क्यार॥
कौन शूरमा मोरे दलमाँ नङ्गी काढ़िलेय तलवार ४
करै बन्दगी तलवारी सों औ गाँजर को होय तयार॥
सुनिकै बातैं ये जैचँदकी झुकिगे सकल शूर सरदार ५
झुका दुलरुवानहिं द्यावलिका औं आल्हाक लहुरवाभाय॥
सुनिकै बातैं ये जैचँद की नैना अग्निवरण ह्वैजायॅ ६
सबदिशिताक्यो सबक्षत्रिनको सबहिन लीन्ह्यो मूड़नवाय॥
उठा दुलरुवा तव द्यावलिको औ आल्हा को शीशनवाय ७
सुमिरि भवानी जगदम्बा को म्यान ते खैंचिलीन तलवार॥
कियो वन्दगी फिर राजा को यहु द्यावलिको राजकुमार ८
हाथ जोरिकै बोलन लाग्यो सुनिये विनय कनौजीराय॥
लाखनि राना सँगमाँ दीजै लीजै पैसा सकल मँगाय ९