पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३९३

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आल्हखण्ड । ३६२ कीरति तुम्हरी जो कोउ गावे पावै वह चहै जो जीय ४ निरभय होवे घर बाहर सों केवल करै तुम्हारी आश ।। बन्धन छूटें सब दुनियाँ के यमकी परे गले नहिं पाश ५ छूटि सुमिरनी गै हाँते अब सुनिये गाँजर केर हवाल । साजिकै फौजै ऊदन चलि हैं लड़ि है बड़े बड़े नरपाल ६ अथ कथामसंग ॥ जैचन्द राजा कनउज वाला पाला सकलजगत सरनाम ॥ लागि कचहरी त्यहि राजा के सोहै सोन सरिस त्यहिधाम ? को गति वरणै त्यहि मन्दिरकै ज्यहिमाँ भरी लाग दार ॥ आस पास माँ राजा सोह बीचम कनउज का सरदार ५ बनासिंहासन है सोने का हीस पन्ना करें वहार ।। तामें बैठे जैवन्द बोले सुनिये सकल शूर सरदार ३ बारह वरसन का अरसा भा पैसा मिला न गाँजर क्यार । कौन शूरमा मोरे दलमाँ नङ्गी कादिलेय तलवार : करै वन्दगी तलवारी सों औ गाँजर को होय तयार ।। सुनिक वातें ये जैछुदकी सुकिगे सकल शूर सरदार " झुका दुलरुवानहिं द्यावलिका औं आल्हाक लहुखामाय ॥ सुनिकै वात ये जैबँद की नैना अग्निवरण द्वैजायें ६ सबदिशिताक्यो सवक्षत्रिनको सबहिन लीन्यो मूडनवाय ॥ उठा दुलरुवा तव द्यावलिको औ आल्हा को शीशनबाय ७ सुमिरि भवानी जगदम्बा को म्यान ते बँचिलीन तलवार ॥ कियो वन्दगी फिर राजा को यहु द्यावलिको राजकुमार हाथ जोरिकै वोलन लाग्यो सुनिये विनय कनौजीराय ।। लाखनि राना सँगमाँ दीजें लीजै पैसा सकल मँगाय । ।