पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३९४

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गाँजरकीलड़ाई । २६५ T विना हकीकी लखराना के पेसा कौन तसीले जाय ॥ साथ में होवें लखराना जो तम् बैठे लेयँ मँगाय १० लई भिड़े को जिम्मा हमरो इन को बार न बाँको जाय ।। हुकुम जो पावों महराजा को गाँजर अबै पहूंचों जाय ११ सुनिक वाते बघऊदन की .बोला कनउज को सरदार ।। सोरह रानिन में इकलौतो मेरो लाखनि राजकुमार १२ सो नहिं जैहै चदि गाँजर को पैसा मिले चहाँ रहिजाय ।। सुनिकै बातें ये जैछुद की बोला तुरत बनाफरराय १३ क्षत्री राजा यह नहिं सोचें मानो सत्य बचन महराज ।। रही न देही रामचन्द्र के रहि ना गये कृष्ण यदुराज १४ यशै इकेलो जग में रहिगो गावें तीनलोक तिहुँकाल।। तासों देवो सँग लाखनि को सोचो कळू नहीं नरपाल १५ सुनिक बातें ये ऊदन की जैद हुकुम दिन फरमाय ।। हुकुम पायकै महराजा को लाखनि ढिगै पहूँचो जाय १६ कही हकीकति सबजेबँदकी यहु द्यावलिको राजकुमार ।। सुनिकै वात बघऊदन की लाखनि बेगि भयो तय्यार १७ चोबदार को फिर बुलवायो ताको दीनो हुकुम सुनाय ।। पिट ढिंढोरा अब कनउज माँ सजिकै फौज आयसबजाय १८ सुनिके बातें लखराना की दौरत चोरदार चलिजाय । दोल बजाई गै कनउज माँ सबका खबरि दीन पहुँचाय १६ - खबरि पायकै सब क्षत्री दल तुरतै सजन लागि सरदार ॥ हथी महाउत हाथी लैकै तिनका करनलागि तय्यार २० अंगद पंगद मकुना भाँरा हाथी भूमा दीन बिठाय ॥ चुम्बक पत्थर का होदा धरि जामें सेल वरोंचा खाय २१