पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३९७

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६ आषहखण्टा ३६६ उत्तर लेके द्वारपाल ने दीन्ह्यो धावन हाथ गहाय॥ चलिक धावन तब विस्यिा ते पहुँचो उदयसिंहदिगआय ४६ शीश नवायो त्यहि ऊदन को कागज दिह्यो हाथ में जाय॥ पढ़िक कागज को बघऊदन औ लाखनिकोदीनसुनाय ४७ सुनिकै कागज को लखराना नैना अग्निवरण हैजायँ ॥ हुकुम लगायो निज फौजन में तोपन विरिया देव उड़ाय ४८ हुकुम पायकै लखराना को मिलमैपहिरि सिपाहिनलीना। धरिक कुंडी लोहेवाली पाछे दाल गैंड़ की कीन ४६ यक यक भाला दुइ दुइ बरछी कम्मर कसी तीन तलवारि ।। जोड़ी तमंचा औ पिस्तौले बांधी बूरी और कटारि ५० धरि बंदूखन को कांधे पर क्षत्री भये बेगि तम्यार॥ हथी चढ्या हाथिन चदिगे बांके घोड़न भे असवार ५१ रणकी मौहरि बानन लागी रणके होन लाग व्यवहार॥ ढाड़ी करखा वोलन लागे विप्रन कीन वेद उच्चार ५२ हिंया हकीकति ऐसी गुजरी अब विरिया का सुनौहवाल। तुरत नगड़ची को बुलवायो हिरसिंहविरियाकोनरपाल ५३ हुकुम पायकै सो ठाकुर को तुरते अटा भौन में जाय ॥ धरयो नगाड़ा को सॅडियापर डंका तुरत बजायो धाय ५४ पहिल नगाड़ा में जिनवन्दी दुसरे बांधि लीन हथियार॥ तिमर नगाड़ा के बाजत खन क्षत्री भये सबै तय्यार ५५ हिरमिह विसिंह इनों भाई हाथिन ऊपर भये सवार। तो सनिके आगे बलि भई पाछे हाथिन केर कतार ५६ चला रिसाला घोदनवाला पाछे ऊँटन के असवार। चले सिपाही त्यहिके पाने खचर चलिमे डेद हजार ५