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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३९७

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आल्हखण्ड। ३९६

उत्तर लैकै द्वारपाल ने दीन्ह्यो धावन हाथ गहाय॥
चलिकै धावन तब बिरिया ते पहुँचो उदयसिंहढिगआय ४६
शीश नवायो त्यहि ऊदन को कागज दिह्यो हाथ में जाय॥
पढ़िकै कागज को बघऊदन औ लाखनिकोदीनसुनाय ४७
सुनिकै कागज को लखराना नैना अग्निबरण ह्वैजायँ॥
हुकुम लगायो निज फौजन में तोपन बिरिया देव उड़ाय ४८
हुकुम पायकै लखराना को झिलमैपहिरि सिपाहिनलीना॥
धरिकै कुंडी लोहेवाली पाछे ढाल गैंड़ की कीन ४९
यक यक भाला दुइ दुइ बरछी कम्मर कसी तीन तलवारि॥
जोड़ी तमंचा औ पिस्तौले बांधी छूरी और कटारि ५०
धरि बंदूखन को कांधे पर क्षत्री भये बेगि तम्यार॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बांके घोड़न भे असवार ५१
रणकी मौहरि बानन लागी रणके होन लाग ब्यवहार॥
ढाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन वेद उच्चार ५२
हिंया हकीकति ऐसी गुजरी अब बिरिया का सुनौहवाल॥
तुरत नगड़ची को बुलवायो हिरसिंहबिरियाकोनरपाल ५३
हुकुम पायकै सो ठाकुर को तुरतै अटा भौन में जाय॥
धर्यो नगाड़ा को सॅड़ियापर डंका तुरत बजायो धाय ५४
पहिल नगाड़ा में जिनवन्दी दुसरे बांधि लीन हथियार॥
तिसर नगाड़ा के बाजत खन क्षत्री भये सबै तय्यार ५५
हिरसिंह विरसिंह दूनों भई हाथिन ऊपर भये सवार॥
तोपैं सजिकै आगे बलि भइँ पाछे हाथिन केर कतार ५६
चला रिसाला घोदनवाला पाछे ऊँटन के असवार॥
चले सिपाही त्यहिके पावे खबर चलिभे डेढ़ हजार ५७