करन निराशा नहिं चाहत हैं मानो सत्य बचन कबिराज ॥
तुमहूं जावो निज मन्दिर को हमहूं जात आपनी राज ११९
यह सुनि गमने चन्द कवीश्वर जयचँद कूच दीन करवाय॥
राति दिनौनन के धावा करि पहुँचेकनउजमेंफिरिआय १२०
पृथुइराज निज महलन पहुँचे पद्मिनि मिली तहांपर आय॥
करि गन्धर्व ब्याह ताके सँग औसुखकरनलागिअधिकाय १२१
पूर स्वयम्बर संयोगिनि का गायों सत्य सत्य सब हाल॥
माथ नवावों शिवशङ्करका अम्बुजसरिसनयनत्रयलाल १२२
किहे कोपिनी हैं सर्प्पन की धारे जटाजूट हैं शीश॥
सकल जगत के सो स्वामी हैं किरपाकरैं ललितपर ईश १२३
माथ नवावों पितु अपने को जिन म्वहिं विद्या दीन पढ़ाय॥
आशिर्बाद देंव मुंशीसुत जीवहु प्रागनरायणभाय १२४
रहै समुन्दर में जबलौं जल जबलौं रह चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तबलौं तुम यशसों रहो सदा भरपूर १२५
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई) मुंशीनबलकिशोरात्मज
बाबू प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसार उन्नामपदेशान्त-
र्गत पँड़रीकलांनिवासि मिश्रबंशोद्भवबुध कृपाशङ्कर
सूनु पणिडतललिताप्रसादकृत पृथुइराजजयचन्द
युद्धवर्णनो नाम तृतीयस्तरङ्गः ॥३॥
संयोगिनिस्वयम्बरसम्पूर्ण॥
इति॥