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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४०१

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आल्हखण्ड। ४००

बाँधिकै मुशकै फिरि दोउनकी कनउज तुरत दीन पहुँचाय॥
किला जीतिकैफिरि विरियाको आगे चला बनाफरराय ९४
चारिकोस जब पट्टी रहिगै ऊदन डेरा दीन गड़ाय॥
सात निराजा पट्टी वालो ताको डॉड़ दवायो जाय ९५
तब हरिकारा पट्टी वाला सातनि खबरि सुनावाआय॥
गाफिल बैठे तुम महराजा डांड़े फौज परी अधिकाय ९६
इतना सुनिकै सातनि राजा गुप्ती धावन दीन पठाय॥
हाल पायकै सो फौजन का राजै फेरि सुनावा आय ९७
सुनी हकीकति जब सातनिने डंका तुरतदीन बजवाय॥
सजे सिपाही पट्टी वाले मनमें श्रीगणेशको ध्याय ९८
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बांके घोड़न भे असवार॥
झीलमबखतरपहिरि सिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार ९९
चढ़िगा हाथीपर महराजा करिकै रामचन्द्र को ध्यान॥
कूच कराय दयो पट्टी सों घूमतआवैं लाल निशान १००
घरी अढ़ाई के अरसा माँ सम्मुख गयो फौजके आय॥
आवत दीख्यो जब फौजनको तुरतै उठा बनाफरराय १०१
भुजा उठाये ऊदन बोल्यो गरूई हाँक देत ललकार॥
सँभरो सँभरो ओ रजपूतो अपने बांधि लेउ हथियार १०२
इतना सुनिकै सब रजपूतन अपनी लई ढाल तलवार॥
हथी चढैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न मे असवार १०३
सजा बेंदुला का चढ़वैया लाला देशराज का लाल॥
मारु मारु करि मौहरिवाजीं बाजी हाउ हाउ करनाल १०४
बजे नगारा औ तुरही फिरि दोलन शब्दकीन बिकराल॥
शूर सिपाही दुहुँ तरफा के लागेयुद्धकरनत्यहिकाल १०५