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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४०२

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गाँजरकीलड़ाई। ४०१

पैदल पैदल कै बरणीभै ओ असवार साथ असवार॥
सुँड़ि लपेटा हाथी भिडिगे अंकुशभिड़े महौतनक्यार १०६
इतनों आगे पट्टी वाला उतसों उदयसिंह सरदार॥
गज के हौदापर महराजा ऊदन बेंदुल पर असवार १०७
गर्दन ठोंकी जब बेंदुल की हौदा उपर पहूंचा जाय॥
कलँगी पगड़ी महराजा की ऊदन दीन्ह्यो भूमिगिराय १०८
औ ललकारा महराजा की पैसा आजदेउ मँगवाय॥
मारि सिरोहिन ते हनिडरिहौं नेका टकालेउँ निकराय १०९
धोखे जयचँद के भूलेना हमरो नाम बनाफरराय॥
उदयसिंह दुनिया मा जाहिर सातनिसाँच दीनबतलाय ११०
बारह बरसन की बाकी जो सो तू आज देय समुझाय॥
नहीं तो बचिहै ना संगरमा जो विधिआपुवचावैआय १११
इतना सुनिकै सातनिराजा हौदा उपर ठाढ़ ह्वैजाय॥
औ ललकारा बघऊदन का क्षत्री काह गये बौराय ११२
बतियाँ आहिन ना कुम्हड़ा की तर्जनि देखिजायँ कुम्हिलाय॥
एक बनाफरकै गिन्ती ना लाखन चढ़ैं बनाफरआय ११३
जबलग हड्डिन मा जी रैहै जबलग रही हाथ तलवार॥
कौड़ी पैसन की बातैं ना देउँ न एक देहँ का बार ११४
जीना चाहै जो दुनियामा तौफिरि लौटिजाय सरदार॥
नहिं शिरकटिहौं मैं संगर में ऊदन देखु मोरि तलवार ११५
इतना कहिकै सातनिराजा अपने शूरन कहा सुनाय॥
जाय न पावैं कनउजवाले इनके देवो मूड़ गिराय ११६
सुनिकै बातैं महराजाकी क्षत्रिन कीन घोरघमसान॥
भाला बलछी तलवारिन सों मारन लागि खूबतहँज्वान ११७

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