पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४०३

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मारहखण्ड। ४०२ बहे पनारा नरदोहन सों नदिया वही रक्त की धार॥ लंबी धोतिन के पहिरैया क्षत्री जूझे तीनि हजार ११८ साल दुसाला मोहनमाला आला परे गले में हार ।। ऐसे सुन्दर रजपूतन को नोचनलागेश्वानसियार ११६ गीधन केरी खुब बनिआई चील्हन भीर भई अधिकाय ।। लगीं वजारें तहँ कौवनकी कालीभूमि परै दिखलाय १२० लगी अथाई तहँ भूतन की प्रेतन .कथा कही ना जाय ॥ यहु अलबेला आल्हा वाला गर्जा समर भूमिमायाय १२१ इन्दल ठाकुर के सम्मुख मा कोऊ शूर नहीं समुहाय ।। चढ़ि पचशब्दा हाथी ऊपर आल्हागये समरमें आय १२२ य? महराजा पट्टी वाला मारत फिरै शूर समुदाय ॥ आल्हा ठाकुर औ सातनि का परिगासमर वरोवरिआय १२३ सातनि बोला तब आल्हाते मानो कही बनाफरराय ।। दीन न पैसा हम जयचंद को कैयो. बार लड़ेते आय १२४ टका न पैही आल्हा ठाकुर याते कूच देउ करवाय ।। इतना सुनिकै आल्हा बोले सातनि काहगयो बौराय १२५ बहुती बातें हम जानें ना पैसा 'आज देउ मँगवाय ।। नहिं दिखलावै अव संगर में जोक्छुकीनबूततवजाय १२६ सुनिकै बातें ये आल्हा की सातनि बैंचि लीन तलवार ।। हनिकै मारा सो आल्हा के आल्हालीन ढालपरवार १२७ भालामारा फिरि आल्हा के सोऊ लीन्ही वार बचाय। गदा चलावा सातनि राजा सो शिरपरी महाउतआय १२८ गिरा महाउत जव आल्हा का इन्दल दीन्यो घोड़ उड़ाय ।। पहुंचा घोड़ा जब हौदापर इन्दलमारयो दालघुमाय १२६