पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४०५

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आल्ह खण्ड/४०४ छोटे भाई हम आल्हाके राजन साँच दीन बतलाय ॥ वाकी देदो तुम जयचंद के हम सब कूचदेय करवाय १४२ इतनी मुनिके राजा वोले मानो कही बनाफरराय ।। झंझी, कौड़ी तुम पैहो ना टेटुवा टायर लेयँ लुटाय १४३ कहाँ मंसई तुम करिआये ऊदन नाम सुनावे भाय ।। तम अस ऊदन बहुतेरन को रणमा मारा खेत खिलाय १४४ सवैया ॥ सुनिक यह बानि कहा वघऊदन साँचसुनै नृप बात हमारी। सेतु बँधा जहँ पय रघुनन्दन बेंदुल टाप तहाँलग धारी ।। जयपुरजीति लुटाय लियों दतिया औ उरैछा भये सब पारी। पृथिराजकी शानकमान बढ़ी ललिते तिनदार गयंद पछारी१४५ झन्ना पन्ना को जीता हम जीता काशमीर मुल्तान ।। थहर थहर सब बूंदी काँपै झंडा अटकपार फहरान १४६ देश देश सब हम मथिडारे मारे हेरि हेरि नरपाल । पैसा लेबैं जब संगर में तवहीं देशराज के लाल १४७ इतना कहिकै उदयसिंह ने तुरतै हुकुम दीन फर्माय ।। जान कामरू के पावें ना इनके देवो मूड़ गिराय १४८ भा खलभल्ला औ हल्ला अति लागी चलन तहाँ तलवार ।। पैदल पैदल के बरणी मै औअसवार साथ असवार१४६ सुंडि लपेटा हाथी भिडिगे अंकुश भिड़े महौतन केर ॥ हौदा हौदा यकमिल द्वैगे मारें एक एक को हेर १५० गाफिलदीख्यो कमलापतिका ऊदन कैद लीन करवाय ॥ चांधिक मुशकै महराजा की कनउज तुरत दीन पठवाय:५१