मुरली मनोहर दोउ भाइन को तहँ पर कैदलीन करवाय॥
सुन्दर फाटक जौन अटकको त्यहिकोतोपनदीनउड़ाय १७३
माल खजाना ताको लैकै तहँ ते कूच दीन करवाय॥
आयकै पहुँचे फिरि जिन्सी में तम्बू तहाँ दीन गड़वाय १७४
बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्द गा छाय॥
राजा जगमनि जिन्सीवाला सोऊगयो समरको आय ९७५
सवैया॥
औ ललकार कियो रण में तुम ठाकुर काहे ग्रस्यो मम ग्रामा।
काह तुम्हार चहैं रणनाहर तौन बताय कहौ यहि ठामा॥
ऊदन बोलि उठा ततकाल सुनो नृप सुन्दरि बात ललामा।
दादशअब्दभये तुमको नृप जयचँदको न दियो कछु दामा १७६
पैसा बाकी सब दैदेवो तो हम कूच देयँ करवाय॥
इतना सुनिकै जिन्सी वाला शूरनबोला वचन सुनाय १७७
मारो मारो श्री रजपूतौ यहही ठीक लीन ठहराय॥
झुके सिपाही दोनों दल मा मार एक एक को धाय १७८
चली सिरोही भल जिन्सी मा लागे गिरन शूर सरदार॥
को गति वरणै त्यहि समया कै आमा झोर चलै तलवार १७९
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्तकी धार १८०
घोड़बेंदुला का चढ़वैया आल्हा केर लहुरवा भाय॥
जीति लड़ाई मा जगमनि को तुरतै कैद लीन करवाय १८१
बांधिकै मुशकै तहँ जगमनिकी तुरतै कनउज दीन पठाय॥
मालखजाना सब जगमनिका ऊदनतुरत लीनलुटवाय १८२