पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४०८

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गाँजरकीलड़ाई । १०७ मुरली मनोहर दोउ भाइन को तहँ पर कैदलीन करवाय ॥ सुन्दर फाटक जोन अटकको त्यहिकोतोपनदीनउड़ाय१७३ माल खजाना ताको लेके तहँ ते कूच दीन करवाय ।। आयकै पहुँचे फिरि जिन्सी में तम्बू तहाँ दीन गड़वाय १७४ बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्द गा छाय।। राजा जगमनि जिन्सीवाला सोऊगयो समरको आय९७५ सवैया ॥ औ ललकार कियो रण में तुम ठाकुर काहे ग्रस्यो मम ग्रामा। काह तुम्हार चहें रणनाहर तोन बताय कहाँ यहि ठामा । ऊदन बोलि उठा ततकाल सुनो नृप सुन्दरि बात ललामा। दादशअन्दभये तुमको नृप जयचॅदको न दियो कछु दामा१७६ पैसा बाकी सब देदेवों तो हम कूच देय करवाय।। इतना मुनिकै जिन्सी वाला शूरनबोला वचन सुनाय १७७ मारो मारो श्री रंजपूतो यहही ठीक लीन ठहराय ।। झुके सिपाही दोनों दल मा मार एक एक को धाय १७८ चली सिरोही भल जिन्सी मा लागे गिरन शूर सरदार॥ को गति वरण त्यहि समयाकै आमा मोर चले तलवार १७६ मूड़न केरे मुड़चौरा मे औ रुण्डन के लगे पहार। मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्तकी धार १८० घोड़वेंदुला का चढ़वैया पाल्हा केर लहुरवा भाय।। जीति लड़ाई मा जगमनि को तुरते कैद लीन करवाय १८१ बांधिक मुशके तहँ जगमनिकी तुरतै कनउज दीन पठाय ।। मालसजाना सब जगमनिका उदनतुरत लीनलुटवाय १८२