पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४०९

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भारुहखण्ड। ४०८ चिन्ता ठाकुर रुसनी वाला ताको जीति लीन फिरिजाय ॥ बजे नगारा हहकाराके तहँ ते चला बनाफरराय १८३ आयकै पहुँचा फिरि गोरखपुर सबियाँ शहर लीन घिरवाय ।। सूरजगकुर गोरखपुर का ऊदन लीन तहाँ बँधवाय १८४ तहते चलिकै पटना आवा यहु रणबाघु बनाफरराय ।। पूरन राजा पटना वाली ताको कैदलीन करवाय १८५ चला वनाफर फिरि तहँना ते काशीपुरी पहूँचा पाय ।। धन्य वखाने हम काशी का मनमेंशिवाचरणकोध्याय१८६ अज अविनाशी घट घट बासी पूरण ब्रह्म शम्भु करतार ॥ परम पियारी निज काशी के आजौ सत्य सत्य रखवार १८७ रहे भास्करानंद स्वामी हैं सबके माननीय शिरताज ॥ अव लग काशी हम देखी ना ना कछुपरा क्यहूते काज १८८ वर्ष अठारा' कीन नौकरी वावू प्रागनरायण धाम ।। छपी पुस्तके ह्याँ जितनी है ते सब पढ़ा पेटके काम १८६ सुनी वड़ाई भल काशी की दासी सरिस मुक्ति तहँ भाय । तौनी काशी अविनाशी मा ऊइन तम्बू दीन गड़ाय १६० हंसामनि काशी का राजा ऊदन कैद लीन करवाय॥ मारू डंका फिरि वनवाये कनउज चलावनाफरराय १६१ तीनि महीना औ तेरा दिन गाँजर खूब कीन तलवार ।। बारह राजन को कैदी करि पठवा जयचंद के दरबार १६२ चोला मारग में लाखनि ते बेटा देशराज को लाल ॥ हम पर साँकर जहँ कहुँ परिहै लाला रतीभानके लाल १६३ बदला देहो की मुरिहौ लाखनि साँच देउ बतलाय ।। मुनिके पाते बघऊदन की लास्वनिगंगशपथगाखाय१६५