पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४१०

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गाँजरकीलड़ाई । ४०६ साथ तुम्हारो साँचो देहैं प्यारे उदयसिंह तुम भाय ।। करत बतकही दउ मारग में कनउजशहर पहूंचे आय १६५ अनंद बधैया घर घर बाजी सबहिन कीन मंगलाचार ।। पूरि लड़ाई भै गाँजर के रक्षा करें सिया भरि १६६ खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डागड़ा निशाको आय ।। आशिर्वाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायणभाय १६७ रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों हैं चन्द औ सूर ।। मालिक ललिते के तवलों तुम यशसों रहो सदा भरपूर १६८ माथ नवावों पितु अपने को जिन बल गाथ भई तय्यार ।। बड़े यशस्वी पितु हमरे हो साँचे धर्म कर्म रखवार १६६ करों तरंग यहाँ सों पूरण तत्रपद सुमिरि भवानीकन्त ।। शम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरिभगवन्त २०० इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई ) मुशीनवलकिशोरात्मजवाबू प्रयागनारायणनीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅडरीकलां निवासिमिश्रवंशोद्भव बुधकृपाशङ्करस्नुपरिडतललितामसाद कृत गाँजरयुद्धवर्णनोनायमथमस्तरंगः १॥ गाँजर का युद्ध समा॥ इति॥