साथ तुम्हारो साँचो देहैं प्यारे उदयसिंह तुम भाय॥
करत बतकही द्वउ मारग में कनउजशहर पहूंचे आय १९५
अनँद बधैया घर घर बाजीं सबहिन कीन मंगलाचार॥
पूरि लड़ाई भै गाँजर कै रक्षा करैं सिया भर्त्तार १९६
खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डागड़ा निशाको आय॥
आशिर्बाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायणभाय १९७
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों हैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तवलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर १९८
माथ नवावों पितु अपने को जिन बल गाथ भई तय्यार॥
बड़े यशस्वी पितु हमरे हौ साँचे धर्म कर्म रखवार १९९
करों तरंग यहाँ सों पूरण तवपद सुमिरि भवानीकन्त॥
शम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त २००
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबू
प्रयागनारायणनीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलां
निवासिमिश्रवंशोद्भव बुधकृपाशङ्करसूनुपरिडतललिताप्रसाद
कृत गाँजरयुद्धवर्णनोनायप्रथमस्तरंगः १॥
गाँजर का युद्ध समाप्त॥
इति॥