पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४१३

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२ आल्हखण्ड। ४१२ भय कथाप्रसंग। एक समैया माहिल ठाकुर लिल्ली घोडापर असवार ।। तितिक्तिक्तिघोड़ीहांकत पहुंचे दिल्ली के दर्वार ? श्रावत दीख्यो जब माहिल को पिरथी कीन बड़ा सत्कार ॥ आवो आवो बैठो वैठो ठाकुर उरई के सरदार २ कुशल बतावो अब मोहबेकी नीके राजकरें परिमाल । इतना सुनिक माहिल बोले साँची सुनो आप नरपाल ३ अवसर नीको यहि समया माँ तुम्हरे हेतु रचा कर्तार । ॥ आल्हा ऊदन गे कनउज का राजा जयचंद के दवार ४ भले बुरे जो दिन बीतत हैं आवें फेरि नहीं सो हाथ ॥ त्यहिते तुमका समुझावत हैं साँची सुनो धरणि के नाथ ५ सिरसा मोहवा यहि समया मां दुनों आप लेउ लुटवाय ॥ सुनिक बातें ये माहिल की भा मनखुशी पिथौराराय ६ सात लाख फिरि फौजें लेके तुरतै कूचदीन . करवाय ।। चारकोस जब सिरसा रहिगा तम्बू तहाँ दीन गड़वाय ७ हुकुम लगायो महराजा ने सिरसा किला गिरावाजाय ॥ । तब हरकारा सिरसा वाला मलखे खबरि जनावा आय फौजे आई पृथीराज की ओ महराज बनाफरराय ।। इतना सुनिक मलखे ठाकुर डंका तुरुन दीन वनवाय ६ हुकुम लगायो अपने दलमा फौजें होन लगी तय्यार ।। तुरत कबुतरी पर चदिवेठा नाहर सिरसा का सरदार १० छींक तड़ाका भै सम्मुख मा माता बोली बचन सुनाय॥ तुम नहिं जावो अब मुर्चा को मानो कही बनाफरराय ११ इतना मनिक मलखे बोले मावा साँच देय बतलाय ॥