अथ कथाप्रसंग॥
एक समैया माहिल ठाकुर लिल्ली घोड़ीपर असवार॥
तिक्तिक्तिक्तिक्घोड़ीहांकत पहुंचे दिल्ली के दर्बार १
आवत दीख्यो जब माहिल को पिरथी कीन बड़ा सत्कार॥
आवो आवो बैठो बैठो ठाकुर उरई के सरदार २
कुशल बतावो अब मोहबेकी नीके राजकरैं परिमाल॥
इतना सुनिकै माहिल बोले साँची सुनो आप नरपाल ३
अवसर नीको यहि समया माँ तुम्हरे हेतु रचा कर्त्तार॥
आल्हा ऊदन गे कनउज का राजा जयचँद के दरवार ४
भले बुरे जो दिन बीतत हैं आवैं फेरि नहीं सो हाथ॥
त्यहिते तुमका समुझावत हैं साँची सुनो धरणि के नाथ ५
सिरसा मोहबा यहि समया मां दुनों आप लेउ लुटवाय॥
सुनिकै बातैं ये माहिल की भा मनखुशी पिथौराराय ६
सात लाख फिरि फौजै लैकै तुरतै कूचदीन करवाय॥
चारकोस जब सिरसा रहिगा तम्बू तहाँ दीन गड़वाय ७
हुकुम लगायो महराजा ने सिरसा किला गिरावाजाय॥
तब हरकारा सिरसा वाला मलखे खबरि जनावा आय ८
फौजै आई पृथीराज की ओ महराज बनाफरराय॥
इतना सुनिकै मलखे ठाकुर डंका तुरुन दीन बजवाय ९
हुकुम लगायो अपने दलमा फौजै होन लगीं तय्यार॥
तुरत कबुतरी पर चढ़िबैठा नाहर सिरसा का सरदार १०
छींक तड़ाका भै सम्मुख मा माता बोली बचन सुनाय॥
तुम नहिं जावो अब मुर्चा को मानो कही बनाफरराय ११
इतना सुनिकै मलखे बोले मावा साँच देयँ बतलाय॥