पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४१६

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काह बना सिरसाकासमर । ४१५ चंजर धरती जब देखी हम तबफिर किलालीन बनवाय ३६ जैसे मालिक परिमालिक है तैसे आप पिथौरासराय ।। अदव तुम्हारो हम मानत हैं राजन कूच देउ करवाय ३७ इतना सुनिकै पिरथी बोले अवहीं किला देउ गिरवाय ।। सिरसा मुहवा नतु दूनों हम मलखे लेव आज लुटवाय ३८ इतना सुनिकै मनखे बोले ओ महराज पिथौराराय ।। हथी पछारा तव दारे मा आपन बूत दीन दिखलाय३६ महराजा ले सत्रियां देश रहा थर्राय ॥ किला गिरावो जो सिरसा का दिल्लीशहर देउँ फुकवाय ४० कौने धोखे तुम भूले हो मारों राज भंग द्वैजाय ॥ इतना सुनिकै पृथीराज ने तोपन आगिदीन लगवाय ४१ हाहाकारी तब बीतति मै मानो प्रलयगई नगच्याय ।। बड़ी लड़ाई में तोपन के औदलगिरा बहुतमहराय ४२ चारकोस लौ गोला जावै गोली पांचखेत ला जाय ।। धुंवा उड़ाना अति तोपन का चहुँदिशि अंधकारमाछाय ४३ चन्द लड़ाई भै तोफ्न के औफिरि चलनलागितलवार।। जितने कायर दूनों दल मा तेसव भागि डारि हथियार ४४ शूर सिपाही रमण्डल मा मारे फेरि फेरि ललकार ।। कटि कटि मूड़ गिरें धरती मा उठि उठि रुण्ड करें तलवार ४५ सूड़न केरे मुड़चौरा भे औं रुण्डन के लगे पहार ।। मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्तकी धार ४६ छुरी कटारी तिहि नदिया मा मचली सरिस परें दिखलाय ।। दाले कछुवा त्यहि नदिया मा गोहै सरिस भुजा उतराय ४७ को गति वरणे त्यहि समया कै नदिया खूब वहै विकराल ।।