बंजर धरती जब देखी हम तबफिर किलालीन बनवाय ३६
जैसे मालिक परिमालिक हैं तैसे आप पिथौरासराय॥
अदब तुम्हारो हम मानत हैं राजन कूच देउ करवाय ३७
इतना सुनिकै पिरथी बोले अवहीं किला देउ गिरवाय॥
सिरसा मुहबा नतु दूनों हम मलखे लेव आज लुटवाय ३८
इतना सुनिकै मनखे बोले ओ महराज पिथौराराय॥
हथी पछारा तव द्वारे मा आपन बूत दीन दिखलाय ३९
काह बतावैं महराजा ले सबियां देश रहा थर्राय॥
किला गिरावो जो सिरसा का दिल्लीशहर देउँ फुँकवाय ४०
कौने धोखे तुम भूले हौ मारों राज भंग ह्वैजाय॥
इतना सुनिकै पृथीराज ने तोपन आगिदीन लगवाय ४१
हाहाकारी तब बीतति भै मानो प्रलयगई नगच्याय॥
बड़ी लड़ाई भै तोपन कै औ दलगिरा बहुतभहराय ४२
चारकोस लौं गोला जावै गोली पांचखेत लौं जाय॥
धुँवा उड़ाना अति तोपन का चहुँदिशि अंधकारमाछाय ४३
चन्द लड़ाई भै तोफ्न के औफिरि चलनलागितलवार॥
जितने कायर दूनों दल मा ते सब भागि डारि हथियार ४४
शूर सिपाही रणमण्डल मा मारैं फेरि फेरि ललकार॥
कटि कटि मूड़ गिरैं धरती मा उठि उठि रुण्ड करैं तलवार ४५
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औं रुण्डन के लगे पहार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार ४६
छुरी कटारी तिहि नदिया मा मछली सरिस परैं दिखलाय॥
ढालै कछुवा त्यहि नदिया मा गोहै सरिस भुजा उतरायँ ४७
को गति बरणै त्यहि समया कै नदिया खूब बहै बिकराल॥
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सिरसाकासमर। ४१५
