पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४१७

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आल्हखण्ड। ४१६ न. योगिनी खप्पर लीन्हे मज्जै भूत प्रेत वैताल ४८ घोड़ी कवुनरी का चढ़वैया नाहर समरधनी मलखान ।। सुमिरन करिक शिवशंकर का मारिके कीन खूब खरिहान ४६ औ ललकारा रजपूतन का हमरे सुनो शूर सरदार ॥ जो कोउ पैदाहै दुनिया मा आखिर मरण होय इकबार ५० परे खटोलिन में मरिजैहो आखिर कैहौ भूत परेत ॥ सम्मुख जूझै तलवारी के त्यहि वैकुण्ठ धाम हरि देत ५१ दिह्यो बढ़ावा बहु क्षत्रिनको नाहर सिरसा के सरदार ।। पैदल पैदल इकमिल द्वैगे औ असवार साथ असवार ५२ विकट लड़ाई क्षत्रिन कीन्ह्यो नदिया वही रक्तकी धार॥ सूरति राजा हाडावाला हाडावाला मलखे सिरसा के सरदार ५३ दूनों अभिरे समरभूमि मा दूनों खूब करें तलवार ॥ भाला बलछी दूनों मारें दूनों लेय ढालपर चार ५४ सूरति गिरिगा जब संगर में अंगद शूर पहूँचां आय ।। औ ललकारा मलखाने को तुम भगि जाउ वनाफरराय ५५ इतना कहिकै अंगद ठाकुर तुरते मारा साँग चलाय ॥ घोड़ी कबुतरी का चड़वैया तुरतै लीन्ह्यो वार बचाय ५६ बैंचिकै मारा तलवारी का औ शिर दीन्यो भूमि गिराय ।। तीनि शूर पिरथी के जूझे हाहाकार शब्द गा छाय ५७ मुर्चा फिरिंगे रजपूतन के काहू धीर धरा न जाय । मलखे मारे दश पंद्राको घोड़ी देवै वीस गिराय ५८ दाँतन काट दापन मारै अद्भुत समर कहा ना जाय। हटा पियारा तव पाछे का आगे बढ़े बनाफरराय ५९ मलखे ताहर का मुर्चा भा मार एक एक को धाय ।।