पदुम पैर है मलखाने के यह वरदीन रहै भगवान ७२
दुनिया बैरी ह्वै मलखे कै भैया काह बनाई आय॥
पदुम न फटि है जो तरवाका तौ नहिं मरी बनाफरगय ७३
लिखी बिधाता के मेटैको माता हाल दीन बतलाय॥
बिदा माँगिकै फिरि जल्दी सों माहिल कुच दीन करवाय ७४
राह छोंड़िकै फिरि उरई के दिल्ली चला तड़ाका जाय॥
लिल्ली घोड़ी का चढ़वैया दिल्ली पहुंचिगयोफिरआय ७५
हाल बतायो सब पिरथी को माहिल बार बार समुझाय॥
भाला वलछी औ साँगनको खन्दक आप देउ गड़वाय ७६
अदुम न रैहै जब तरवा मा तव ना रही बनाफरराय॥
भीचु आयगै मलखाने कै माता हाल दीनबतलाय ७७
सुनिकै बातैं ये माहिल की राजा कुँवर लीन बुलवाय॥
दुइसै खन्दक तुम खुदवावो आधे देउ जाय पटवाय ७८
एक छाँडिकै इक पटवावो या विधि दीन खूब समुझाय॥
अधीराति के फिरि अमला मा कुँवरनकीन तहाँ तसजाय ७९
पाँच रातिमें यह रचनाकार दिल्ली फेरि पहूँचे आय॥
हाल बतायो सब पिरथी को कुँवरन बार बार समुझाय ८०
माहिल चलिमे फिरि उरई का राजा फौज कीन तैयार॥
झीलमबखतरपहिरि सिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार ८१
पहिल नगाड़ा में जिनबन्दी दुसरे फाँदि घोड़ असवार॥
तिसर नगाड़ा के बाजत खन चलिभे सबै शूर सरदार ८२
जायकै पहुॅचे फिरि संगर में तम्बू तहाँ दीन गड़वाय॥
लिखीहकीकति फिरिमलखेको अवहूं किला देउ गिखाय ८३
लिखिकै चिट्ठी दी धावन को धावन तुरत पहुंचा जाय॥
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आल्हखण्ड। ४१८
