पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४१९

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आल्हखण्ड।११८ पदुम पैर है मलखाने के यह वरदीन रहे भगवान ७२. दुनिया बैरी है मलखे के भैया काह बनाई प्राय ॥ पदुम न फटि है जो तरवाका तो नहिं मरी बनाफरगय ७३ लिखी विधाता के मेटेको माता हाल दीन बतलाय ॥ विदा माँगिकै फिरि जल्दी सों माहिल कुच दीन करवाय७४ राह बोंडिकै फिरि उरई के दिल्ली चला तडाका जाय ।। लिल्ली घोड़ी का चढवैया दिल्ली पहुंचिगयोफिरआय ७५ हाल बतायो सव पिरथी को माहिल वार वार समुझाय।। माला वलछी औं साँगनको खन्दक आप देउ गड़वाय ७६ अदुम न रहै जब तखा मा तब ना रही वनाफरराय ।। मीचु आयगै मलखाने के माता हाल दीनबतलाय ७७ मुनिक बातें ये माहिल की राजा कुँवर लीन बुलवाय।। दुइसै खन्दक तुम खुदवावो आधे देउ जाय पटवाय ७८ एक छाँडिक इक पटवावो या विवि दीन खूब समुशाय॥ अधीराति के फिरि अमला मा कुँवरनकीन तहाँ तसजाय ७६ पाँच रातिमें यह रचनाकार दिल्ली फेरि पहूँचे आय ॥ हाल बतायो सब पिरथी को कुँवरन वार वार समुझाय ८० माहिल चलिमे फिरि उरई का राजा फौज कीन तैयार ।। झीलमवखतरपहिरि सिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार ८१ पहिल-नगाड़ा में जिनबन्दी दुसरे फाँदि घोड़ असवार ।। तिसर नगाड़ा के वाजत खन चलिमे सबै शूर सरदार ८२ मायके पहुँचे फिरि संगर में तम्बू तहाँ दीन गड़वाय ।। बुलिखीहकीकति फिरिमलखेको अवहूं किला देउ गिखाय-८३ लिखिकै चिट्ठी दी धावन को धावन तुरत पहुंचा जाय।