पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२

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अथ पाल्हखण्ड॥ महोवे का प्रथमयुद्धवर्णन॥ सवैया॥ काको मैं ध्यावों मनावों सदा तुमको तजिकै सुनिये रघुनाथा । मेरे तो एक तुम्ही प्रभुजी अब काह बनाय लिखों बहुगाथा ।। स्वारथ साथ सबै नरदेत न देत कोऊ परमारथ साथा ।। दीन पुकार करै ललिते प्रभु बेगिकरो जनजानि सनाथा ? सुमिरन ॥ कण्ठ में बैठो तुम कण्ठेश्वरि भुजबल बैठिजाउ हनुमान ॥ बैठु शारदा मोरि जिह्वा माँ जासों करूँ आल्ह को गान १ नहीं आसरा निजभुजबलको है यहु आल्हा सिंधु अपार ।। डगमग डगमग नैया होवे माता तुही लगावै पार २ रह्यों प्रतापी में सतयुग माँ त्रेता रह्यों बहुत बरियार ॥ बड़ी बड़ाई भै द्वापर माँ जवलग रहे परीक्षित यार ३ अब बृद्धाई अति छाई है गाई जाय नहीं सो यार ।।