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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२०

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सिरसाकासमर। ४१९

द्वारे ठाढ़े मलखाने थे चिट्ठी तुरत दीन पकराय ८४
चढ़ा पिथौराहै सँभराभरि औं यह कहा बनाफरराय॥
किला गिरावैं जो सिरसा का तौ सब रारि शान्तह्वैजाय ८५
नहीं तो बचिहैं ना संगरमा जो बिधि आपु बचावैं आय॥
लौटि पिथौरा अव जैहै ना सिरसा ताल देय करवाय ८६
मृत्यु आयगै मलखाने कै जो नहिं किला देयँ गिरवाया॥
लौटि पिथौरा अब जैहै ना नेका टका लेय निकराय ८७
चौंड़ा बकशी पृथीराज का सोऊ कहा सँदेशा आय॥
बने जानना मलखाने अब घरमा बैठि रहैं शर्माय ८८
कौने राजा की गिनती मा जो नहिं किला देयँ गिरवाय॥
कह्यो संदेशा यह ताहर है सो सुनिलेउ बनाफरराय ८९
मलखे चाकर परिमालिक का सो कस गरि मचावै आय॥
दीन बड़ाई हम चाकरको पहिले फौज लीन हटवाय ९०
जियति न जाई अब संगर ते जो बिधि आपु बचाई आय॥
कह्यो सँदेशा सब लोगन को धावन बार बार समुझाय ९१
सुनिकै बातैं ये धावन की क्रोधित भयो बनाफरराय॥
हुकुम लगायो फिरि सिरसामें बाजन सबै रहे हहराय ९२
बोले मलखे फिरि धावन ते यह तुम कह्यो पिथौरै जाय॥
मारे मारे मुख घावन के धावन द्याव तहाँ समुझाय ९३
यहै बतायो तुम पिरथी ते आवत समरधनी मलखान॥
कसरि न राखैं चौंड़ा ताहर संगर करैं दूनहू ज्वान ९४
कीन जनाना हम दोउन का उनके साथ कौन मैदान॥
हमरो संगर पृथीराज को ना सँभरि आज चौहान ९५
इतना सुनिकै धावन चलि कै राजै खबरि बतावा आय॥