पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्ह खण्ड। ४२२ सुनिके बातें हरिकारा की विस्मा गिरी मूर्ध्वाखाय ११८ खवीर पायकै गजमोतिनि तहँ फिरिउठिवैठि फेरि गिरिजाय ।। सासु पतोहू बैली द्वैके शिरधुनिवारवार पछितायँ११६ सुयश वखाने मलखाने का महलन गई उदासी छाय॥ सात पांच दश जुरी सहिलरी सम्मत देनलगींसो आय १२० तब गजमोतिनि विरमा दूनों पलकी लीन तहाँ मँगवाय ।। सुमिरि गजानन लम्बोदर को गौरा पारवती पद ध्याय १२१ चढ़ी पालकी सासु पतोहू पहुंची समरभूमि में प्राय ।। गदहन पृथ्वी को जुतवावै यहु महराज पिथोराराय १२२ तब गजमोतिनि ने ललकारा यह सुनि लेउ वीर चौहान ।। यह ना जान्यो अपने मनते की मरिगये वीर मलखान १२३ सुनी पतिव्रतकी महिमा ना ताते चढ़ी तुम्हारे शान ।। हम जवलेवे तलवारी को तब नहि रही तुम्हारोमान १२४ बातें सुनिकै गजमोतिनि की पृथ्वी कूच दीन करवाय ॥ कैयो दिन का धावा करिके दिल्ली शहर पहूंचे आय १२५ - लाश देखिकै मलखाने के माता तुरत गई लपटाय ॥ उठे शो ठे गिरि गिरि जावै रानीदशा कही ना जाय १२६ विपदा -वरणों गजमोतिनिकै तो फिरिएकसाल लगिजाय ।। ॥ सखी सहिलरी तह समुझावै विरमा धीरज रही कराय १२७ तेज पतिवत का जाहिर है जाते सत्त चढ़ा अधिकाय ।। चिता लगावा गा चन्दन सों रानी बैठि सरापर जाय १२८ सुमिरि भवानी महरानी को पतिशिर धरा जाँघपर आय।। हवा खंचिके सब देहीकै शिरपरदीनतुरतपहुंचाय१२६ संध्या चाले यह गति जाने प्राणायाम करें जे भाय ॥ न