सुनिकै बातैं हरिकारा की बिरमा गिरी मूर्च्छाखाय ११८
खबरि पायकै गजमोतिनि तहँ फिरिउठिबैठि फेरि गिरिजाय॥
सासु पतोहू बैली ह्वैकै शिरधुनिबारबार पछितायँ ११९
सुयश बखानैं मलखाने का महलन गई उदासी छाय॥
सात पांच दश जुरीं सहिलरी सम्मत देनलगींसो आय १२०
तब गजमोतिनि बिरमा दूनों पलकी लीन तहाँ मँगवाय॥
सुमिरि गजानन लम्बोदर को गौरा पारवती पद ध्याय १२१
चढ़ी पालकी सासु पतोहू पहुंचीं समरभूमि में आय॥
गदहन पृथ्वी को जुतवावै यहु महराज पिथौराराय १२२
तब गजमोतिनि ने ललकारा यह सुनि लेउ वीर चौहान॥
यह ना जान्यो अपने मनते की मरिगये वीर मलखान १२३
सुनी पतिव्रतकी महिमा ना ताते चढ़ी तुम्हारे शान॥
हम जवलेबे तलवारी को तब नहिं रही तुम्हारोमान १२४
बातैं सुनिकै गजमोतिनि की पृथ्वी कूच दीन करवाय॥
कैयो दिन का धावा करिकै दिल्ली शहर पहूंचे आय १२५
लाश देखिकै मलखाने कै माता तुरत गई लपटाय॥
उठै औ बैठै गिरि गिरि जावै रानीदशा कही ना जाय १२६
बिपदा बरणौं गजमोतिनिकै तो फिरिएकसाल लगिजाय॥
सखी सहिलरी तहँ समुझावैं बिरमा धीरज रही कराय १२७
तेज पतिव्रत का जाहिर है जाते सत्त चढ़ा अधिकाय॥
चिता लगावा गा चन्दन सों रानी बैठि सरापर जाय १२८
सुमिरि भवानी महरानी को पतिशिर धरा जाँघपर आय॥
हवा खैंचिकै सब देहीकै शिरपरदीनतुरतपहुंचाय १२९
संध्या वाले यह गति जानैं प्राणायाम करैं जे भाय॥
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आल्हखण्ड। ४२२
