पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२५

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आल्हखण्ड । ४२४ घर घर चर्चा मलखाने की पुर पुर रहे नारि नर गाय १४२ सर्वया ॥ कौन कहै बिपदा पुरकीप्रति श्वान शृगालन शोर मचायो। शान न मान न आन कहूं मलखान विना विपदा पुर छायो।। घोर मशान समान तहाँ मलखान जहाँ नित सेज लगायो । मानगयो अरमानगयो ललिते मलखान महायश पायो १४३ समर पूर में सिरसागढ़ का गार्यों सुमिरि शारदा माय ॥ आशिर्वाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायण भाय १४४ रहे समुन्दर में जबलौं जल जबलों रहैं चन्द औ सूर ॥ मालिक ललिते के तबलौं तुम यशसों रहौ सदा भरपूर १४५ खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डा गेड़ा निशाको आय ॥ परे आलसीखटिया तकि तकि संतन धुनी दीन परचाय १४६ माथ नवावों में माता को जो प्रत्यक्ष अवौं संसार १५ पापिकमल धरि सो पीठी मा हमरो करें अवौ निस्तार १४७ माथ नवाबों पितु अपने को ह्याँते करों तरँग को अन्त ।। राम रमा मिलि दर्शन देव इच्छा यही भवानीकन्त १४८. इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई) मुशीनवलकिशोरात्मज बाबू प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामभदेशान्तर्गत पॅडरीकलां निवासि मिश्रवंशोद्भव बुध कृपाशङ्करसूनु पं० ललिताप्रसादकृत सिरसासपर वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥ सिरसा समर सम्पूर्ण ॥ इति॥