पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२७

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V भाल्हखण्ड। ४२६ शिवा विहारी सब सुखकारी धारी सदा गंग को शीश ४ तिनके भुजबल बल ललितेको फलिते करें याहि गौरीश। कीरति सागर की गाथा को ललिते कहें नायकर शीश ५ अथ कथामसंग ॥ सवन सुहावन जन आवत भा तक सब चले विदेशी ज्वान ।। कीन चढ़ाई पृथीराज ने 'जब मरिगये बीर मलखान १ ? कीरतिसागर मदनताल पर सब रंग ध्वजा रहे फहराय।। परा पिथौरा दिल्लीः वाला आला रूप शील समुदाय २ हाल पायकै परिमालिक ने फाटक वन्द लीन करवाय ।। बन्धन छूटें ना गौवन के नाकउ त्रिया सेजपर जाय ३ मारे डरके पिंडरी का मोइवा थहर थहर थर्राय ।। बिना इकेले बघऊदन के फाटक कौन खुलावे आय ४ ऐसी. वाते. घर घर होवें दर दर नारिझुण्ड अधिकाय ।। ॥ मस्तक पीट कर अपने सों औ यह कथा रहीं तहँ गाय ५ होत बनाफर जो सिरसा का फाटक आज देत खुलवाय।। पवनी आई है मूड़ेपर लूटन अवा, पिथौराराय ६ कुशल न देखें हम मुहबे मा संकट परा आज दिनआय ॥ विना इकेले अव आल्हा के फाटक कौन खुलावै धाय ७ देवा सुलखे की मारुन मा ठहरत कौन यहांपर माय ॥ हाय गुसैयाँ की मरजी अस पवनी गई मूड़पर आय ८ कौन बचाई पृथीराज सों झंडा मदन ताल फहराय ।। सात कोस के चौगिर्दा में तम्बू तम्बू परें दिखाय. पति औं देवर भोजन करते घरमा कहें हमारे माय ।। नव तो बुढ़िया तिरिया बोली मन में श्रीगणेशको ध्याय १०