शिवा बिहारी सब सुखकारी धारी सदा गंग को शीश ४
तिनके भुजबल बल ललितेको फलिते करैं याहि गौरीश॥
कीरति सागर की गाथा को ललिते कहैं नायकर शीश ५
अथ कथाप्रसंग॥
सवन सुहावन जब आवत भा तब सब चले बिदेशी ज्वान॥
कीन चढ़ाई पृथीराज ने जब मरिगये बीर मलखान १
कीरतिसागर मदनताल पर सब रँग ध्वजा रहे फहराय॥
परा पिथौरा दिल्ली वाला आला रूप शील समुदाय २
हाल पायकै परिमालिक ने फाटक बन्द लीन करवाय॥
बन्धन छूटैं ना गौवन के ना क्वउ त्रिया सेजपर जायँ ३
मारे डरके पिंडुरी काँपैं मोहबा थहर थहर थर्राय॥
बिना इकेले बघऊदन के फाटक कौन खुलावै आय ४
ऐसी बातैं घर घर होवैं दर दर नारिझुण्ड अधिकाय॥
मस्तक पीटैं कर अपने सों औ यह कथा रहीं तहँ गाय ५
होत बनाफर जो सिरसा का फाटक आज देत खुलवाय॥
पवनी आई है मूड़ेपर लूटन अवा पिथौराराय ६
कुशल न देखैं हम मुहबे मा संकट परा आज दिनआय॥
बिना इकेले अब आल्हा के फाटक कौन खुलावै धाय ७
देबा सुलखे की मारुन मा ठहरत कौन यहांपर माय॥
हाय गुसैयाँ की मरजी अस पबनी गई मूड़पर आय ८
कौन बचाई पृथीराज सों झंडा मदन ताल फहराय॥
सात कोस के चौगिर्दा में तम्बू तम्बू परैं दिखाय ९
पति औं देवर भोजन करते घरमा कहैं हमारे माय॥
तव तो बुढ़िया तिरिया बोली मन में श्रीगणेशको ध्याय १०