पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२८

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कीरतिसागरकामैदान । ४२७ ३ धीरज राखो अपने मनमा करि है काह पिथौरा प्राय ॥ मनियादेवन की शरणागत जावो हाथ जोरि शिरनाय ११ त्यई सहायी सुखदायी अब फाटक तुरत देय खुलवाय ॥ घर घर सुमिरै नरनारी सब साँचे देव परें दिखराय १२ घट घट व्यापी अरि परितापी जापी चले जायँ तिनधाम ।। आला देवन में देवता हैं मनियादेव मोहोवे ग्राम १३ भा खलभल्ला औ हल्लाअति घर घर गई. उदासीछाय ॥ टोला टोला में हल्लामा लल्ला नहीं बनाफरराय १४ बिना इकेले बघऊदन के फाटक कौन खुलावै आय॥ ऐसे घर घर पुरवासी सब दर दर कहैं नारिनर धाय १५ भा खलमल्ला रनिवासे माँ -मोहबा गँसा पिथौराआय ॥ धवी शारदा त्यहि समया मा मल्हनाध्यायरही शिरनाय १६ तुम्हरे बूते बघऊदन ने जीता देश देश सब जाय। तुम लैआवो उदयसिंह को ईजति राखु शारदामाय १७ सदा सहायी तुम मायी हो गायी तीनि लोक गुणगाथ ॥ मोहिं अनाथिनिकी मातातुम तुम्हरे चरण हमारो माथ १८ दैकै सुपना वघऊदन को माता लावो यहाँ बुलाय ।। नितप्रति पूजा हम मोहवे मा चन्दन अक्षत फूल चढ़ाय १६ चढ़ा पिथौरा है सँभरा भर हमरे प्राण रहे घबड़ाय ।। कऊ सहायी ना दुनिया माँ ईजति राखु शारदा माय २० चैठि कुशासन रानी मल्हना सारी दीन्ही रैनि गँवाय ॥ स्वपना देखा ताही निशिमाँ औ जगि परा बनाफरराय २१ हाल वतावा सब देवा का ठाकुर उदयसिंह समुझाय ।। इतना सुनिक देवा बोला साँची सुनो बनाफरराय २२