पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२९

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आल्हखण्ड । ४२८- जैसो स्वपना तुम देखा है तैसो दीख हमों है भाय ॥ विपदा आई है मल्हना पर साँचो साँच वनाफरराय २३ होत भुरहरे के स्वपना सब साँचे उदयसिंह सरदार ॥ करो बहाना अव गाँजर को श्री मोहने को होउ तयार २४ कुँवा विवाहन की विरिया मा दीन्ह्यो प्राण नेग तुम भाय ॥ चढ़ा पिथौरा है दिल्ली का साँचोस्वपनपरादिखलाय २५ चलिये जल्दी अब मोहवे को लाखनिराना संगलिवाय।। इतना सुनिकै द्यावलि वाला लाखनि पास पहूँचा जाय २६ बड़ी नम्रता ते बोलत भा यह रणवाघु वनाफरराय ।। जाहिर पवनी है मोहवे की साँची सुनो कनौजीराय २७ मोरि लालसा यह डोलति है पवनी करें मोहोवे जाय ।। ॥ करें वहाना हम गाँजर को तुमको मोहवा लवें दिखाय २८ इतना सुनिकै लाखनि बोले चलिये बेगि बनाफरराय ।। चरचा करिये नहिं मोहवे की नहिं सब जैहें काम नशाय २६ करो तयारी अब गाँजर की पहुँचें नगर मोहोवे जाय । जैसि दवाई रोगी मागै तैसी चैद देय बतलाय ३० तैसि खुशाली भै ऊदन के डंका तुरत दीन बजवाय ।। हुकुमलगायो फिरि लश्करमा सजिगे सवै शूर समुदाय ३१ जहाँ कचहरी चंदेले की ऊदन तहाँ पहूँचे जाय ।। हाल बतायो महराजा को दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ३२ लाखनिरानाकी मंशा है गाँजर खेलें खूब शिकार ।। म्बरिव लालसा यह डोलतिहै राजा कनउज के सरदार ३३ मुनिके बातें वघऊदन की राजै हुकुम दीन फरमाय ।। तहते चलिकै अदन देवा आल्हा पास पहूँचे आय ३४