पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३०

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। कीरतिसागरकामैदान । ४२६ कही हकीकति सब आल्हासों ऊदन बार बार समुझाय॥ जानिकै इच्छा लखराना की आल्हा ठाकुर रहे चुपाय ३५ माथ नायकै फिरि पाल्हा को माता पास पहूँचे आय॥ कह्यो हकीकति महतारी सों - दोऊ चरणन शीशनवाय ३६ बिदा माँगिकै महतारी सों भाभी पास पहूँचे जाय ॥ हाल बतायो सब सुनवाँ को साँचो साँच बनाफरराय ३७ बड़ी खुशाली सों भाभी ने आशिखाद दीन हर्षाय ।। माथ नायकै उदयसिंह फिर फौजन तुरत पहूँचे आय ३८ लाखनि देवा ऊदन तीनों लश्कर कूच दीन करवाय ॥ बाजत डंका अहतंका के यमुनापार पहूँचे जाय ३६ नदी बेतवा को उतरत भे झाबर डेरा दीन - डराय ।। योगिहा बस्तर सब क्षत्रिन को ऊदन तहाँ दीन पहिराय ४० लाखनि ऊदन देवा सय्यद सम्मत कीन तहाँ त्यहिवार ॥ सिरसा केरे फिरि फाटकमाँ आये सबै शूर सरदार ४१ सवैया।। फाटक हाटक नाटक दीख बिना मलखान नहीं गुलजारा। श्वान शृगालनजाति जमाति औ भांति सबै विपरीत निहारा।। ऊदन नैनन नीरन धार अपार वही सो सही त्यहि वारा। शोचत मोचत नैनन को ललिते लखि ऐनन नैननदारा ४२ एक वरदिया लखि वोलतभा योगी काह शोच यहिबार ।। एक इकेले मलखाने विन पृथ्वी डारा नगर उजार ४३ दगा ते मारे मलखानेगे अब ह्याँ रोवें श्वान शृगाल ।। इतना सुनिक देवा उदन नेनन दाँपि लीन रूमाल ४४