पर्व भुजरियन कै मूड़ेपर पृथ्वी गाँसि मोहोबा लीन॥
कैसे जैबे हम सागर पर पबनी खोंटि बिधातै कीन ९३
प्यारी बेटी चन्द्रावलि घर ऊदन लाये बिदाकराय॥
सो नहिं जैहै जो सागर पर हमरी जियत मौत ह्वैजाय ९४
बेटी ठाढ़ी चन्दावलि तहँ नैनन ऑस रही ढरकाय॥
जैसो योगी यहु ठाढ़ो है ऐसो मोर लहुरवा भाय ९५
हाय! अकेले बिन ऊदन के गड़बड़ परा नगर में आय॥
ऊदन मलखे की समता का तीसर भयो कौन जगमाय ९६
मोहिं अभागिनि के कर्म्मन ते दूनों भाई गये हिराय॥
कह्यो संस्कृत मा ऊदन ते लाखनिराना बचनसुनाय ९७
नाम वतावो तुम मल्हना ते काहे धरी निठुरता भाय॥
कह्यो संस्कृत मा ऊदन तब तुम सुनिलेउ कनौजीराय ९८
नाम बता जो मल्हना ते हमरी जियत मृत्यु ह्वैजाय॥
इतना कहिकै लखराना ते मल्हनै बोले वचन सुनाय ९९
शोच न राखो कछु मन अन्तर रानी साँच देयँ बतलाय॥
पर्व तुम्हारी हम करवैहैं अपनोयोगदि हैंदिखलाय १००
काह हकीकति है पिरथी कै गड़बड़ करै परब में आय॥
हैं अनगिनती योगी सँगमा झावर डेरादीन गड़ाय १०१
करी लवरई पिरथी राजा दिल्ली ताल देव करवाय॥
कीन इशाराफिरि लाखनि तन आपन गुरूदीनबतलाय १०२
गुरू जानिकै लखराना को चन्द्रावलि ने कहा सुनाय॥
होय सनीनो अब सागर माँ जो गुरुवावा करो सहाय १०३
नहीं सनीनो अब मोहबे माँ साँचो नहीं परै दिखलाय॥
लाखनि बोले चन्दावलि ते वहिनी साँचदेयॅ बतलाय १०५
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आल्हखण्ड। ४३४
