पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हखण्ड । ४३४ पर्व भुजरियन के मूड़ेपर पृथ्वी गाँसि मोहोवा लीन ।। कैसे जैसे हम सागर पर पबनी खोटि विधात कीन ६३ प्यारी-बेटी चन्द्रावलि घर ऊदन लाये विदाकराय ।। सो नहिं जैहै जो सागर पर हमरी जियत मौत लैजाय ६४ बेटी ठाढ़ी चन्दावलि तहँ नैनन ऑस रही दरकाय॥ जैसो योगी यहु ठादो है ऐसो मोर लहुस्वा भाय ६५ हाय ! अकेले बिन ऊदन के गड़बड़ परा नगर में प्राय ।। ऊदन मलखे की समता का तीसर भयो कौन जगमाय ६६ मोहिं अभागिनि के कर्मन ते दूनों भाई गये हिराय ॥ कह्यो संस्कृत मा ऊदन ते लाखनिराना बचनसुनाय ६७ नाम वतावो तुम मल्हना ते काहे धरी निठुरता भाय ॥ कह्यो संस्कृत मा ऊदन तब तुम सुनिलेउ कनौजीराय ६८ नाम बता जो मल्हना ते हमरी जियत मृत्यु लैजाय ॥ इतना कहिकै लखराना ते मल्हनै बोले वचन सुनाय ६६ शोच न राखो कछु मन अन्तर रानी साँच देय बतलाय ।। पर्व तुम्हारी हम करवैहैं अपनोयोगदि हँदिखलाय१०० काह हकीकति है पिरथी के गड़बड़ कर परब में आय ।। हैं अनगिनती योगी सँगमा झावर डेरादीन गड़ाय १०१ करी लवरई पिरथी राजा दिल्ली ताल देव करवाय ॥ कीन इशाराफिरि लाखनि तन आपन गुरूदीनवतलाय १०२ गुरू जानिकै लखराना को चन्द्रावलि ने कहा सुनाय ।। होय सनीनो अब सागर माँ जो गुरुवावा करो सहाय १०३ नहीं सनीनो अब मोहवे माँ साँचो नहीं पर दिखलाय ।। लाखनि वोले चन्दावलि ते वहिनी साँचदेय बतलाय १०५