पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३६

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कीरतिसागरकामैदान । ४३५ योग दिखावब हम सागर पर खेतम लड़व बरोवरि आयः॥ देखि सनीनो हम मोहवे का पाछे धरव अगाड़ी पायँ १०५ पंद्रादिन लौँ रहि मोहवे मा तुम्हरी परख देव करवाय ॥ नहिं मुख देखें हम पिरथी का गड़बड़ तहाँ मचा आय १०६ अड़वड़ योगी हमरे सँग मा लड़बड़ गड़बड़ देय हटाय ॥ बड़बड़ राजनकी गिनती ना सड़बड़ करें हमारी आय १०७ 'काह हकीकति है पिरथी के जो तहँ चेंय करें मुख माय ॥ मान न रहें तह काहू के योगी योग देय दिखलाय १०८ काल्हि सवेरे तुम सागर मा पवनी करो आपनी जाय । दूत पंठावो तुम झाबर का योगी फौज देय दिखलाय१०६ मारि गिरावें हम भोगिन का माता साँच दीन बतलाय ।। भयो आसरा तब मल्हना के योगी चलिभेशीश नवाय११० सुनी बतकही यह माहिल जब याहिल चुगुलन मा सरदार ।। चला उताइल सो सागर को राजा पिरथी के दरबार १११ बड़ी खातिरी करि माहिल के राजा पास लीन बैठाय ।। कही हकीकति तह योगिन के माहिल बार बार सब गाय ११२ योगी आये अनगिनती हैं झाबर डेरा दिह्यनि डराय ॥ शपथ खायकै ते मल्हना ते अवहीं गये पिथोराराय ११३ मारि गिरावब हम सागर मा गड़बड़ जौन मचाई आय ॥ ॥ काह हकीकति पृथीराज के आपनयोग देवदिखलाय ११४ साँचे योगी सो अड़बड़ हैं हमहूँ देखि गयन सकुचाय ।। पहिले खेदो तुम योगिनका पाछे मोहना लेउ लुटाय ११५ काह हकीकति है योगिन के सरबार करें नृपति के आय ।। चौंड़ो धांधू को पठवावो योगी न देय करवाय ११६