फौज तुम्हारी ह्याँ जितनी है सबको भोजन देयँ पठाय॥
खावो पीवो हरिको ध्यावो जावो हरद्वार को भाय १२९
इतना सुनिकै ऊदन तड़पे चौंड़ा चला तुरत भयखाय॥
आय कै पहुँचा त्यहि तम्बू मा जहँ पर बैठ पिथौराराय १३०
कही हकीकति सब योगिन कै चौड़ा बार बार समुझाय॥
सुनी ढिठाई जब योगिन कै माहिलबोले शीशनवाय १३१
अब हम जावत हैं मोहबे को तुम्हरे काज पिथौराराय॥
इतनी कहिकै माहिल चलिभे पहुँचे फेरि मोहोबे आय १३२
रानी मल्हना ह्याँ महलन मा मनमा बार बार पछिताय॥
त्यही समइया त्यहि औसरमा माहिलभाय पहूँचाजाय १३३
मल्हना बोली तहँ माहिल ते नीके गयो यहाँपर आय॥
हाल बतावो अब सागर का चाहत काह पिथौराराय १३४
सुनिकै बातैं ये बहिनी की बोला उरई का सरदार॥
बैठक मांगत है खजुहा की माँगै राजग्वालियरक्यार १३५
उड़न बछेड़ा पाँचो माँगै औरो चहै नौलखाहार॥
डोलामाँगै चन्द्रावलि का राजा दिल्ली का सरदार १३६
तुम्हरी दिशितें हम पिरथी ते बोल्यन बहुतभांति समुझाय॥
लाख रुपैया लग लैकै तुम ह्याँति कूचदेउ करवाय १३७
यह मनभाई नहिं पिरथी के चौंड़ा ताहर उठे रिसाय॥
जो कछु माँगत महराजा हैं सोई देउ आप मँगवाय १३८
कुशल न मानो तुम मोहोबे कै तिलतिल भूमिलेउँ खुदवाय॥
पारस पत्थर पिरथी माँगैं बहिनीसाँचदीनबतलाय १३९
ये सब चीजैं अब लीन्हे बिन जावैं नहीं पिथौराराय॥
ताहर चौंड़ा की मरजी अस सबियांमोहबालेयँ लुटाय १४०
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कीरतिसागरकामैदान। ४३७
