पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३८

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कीरतिसागरकामैदान । १३७ फौज तुम्हारी ह्याँ जितनी है सबको भोजन देय पठाय ।। खावो पीवो हरिको ध्यावो जावो हरद्वार को भाय १२६ इतना सुनिकै ऊदन तड़पे चौड़ा चला तुरत भयखाय ।। आय के पहुँचा त्यहि तम्बू मा जहँ पर बैठ पिथौराराय १३० कही हकीकति सब योगिन के चौड़ा वार वार समुझाय ।। सुनी ढिठाई जब योगिन के माहिलवोले शीशनवाय १३१ अब हम जावत हैं मोहबे को तुम्हरे काज पिथौराराय ॥ इतनी कहिकै माहिल चलिमे पहुँचे फेरि मोहोवे प्राय १३२ रानी मल्हना ह्याँ महलन मा . मनमा बार बार पछिताय ।। त्यही समझ्या त्यहि औसरमा माहिलभाय पहूँचाजाय १३३ मल्हना बोली तहँ माहिल ते नीके गयो यहाँपर आय ॥ हाल बतावो अब सागर का चाहत काह पिथौराराय १३४ सुनिकै बातें ये बहिनी की बोला उरई का सरदार ।। चैठक मांगत है खजुहा की माँगै राजग्वालियरक्यार १३५ उड़न बछेड़ा पाँचो माँगे औरो चहै नौलखाहार ।। डोलामाँगै चन्द्रावलि का राजा दिल्ली का सरदार १३६ तुम्हरी दिशितें हम पिरथी ते बोल्यन बहुतभांति समुझाय॥ लाख रुपैया लग लैकै तुम ह्याँते कूचदेउ करवाय १३७. यह मनभाई नहिं पिरथी के चौड़ा ताहर उठे रिसाय॥ जो कळु माँगत महराजा हैं सोई देउ आप मँगवाय १३० कुशल न मानो तुम मोहोवे के तिलतिल भूमिले। खुदवाय ॥ पारस पत्थर पिरथी माँग बहिनीसाँचदीनवतलाय १३६ ये सब चीजें अब लीन्हे विन जानैं नहीं पिथौराराय।। ताहर चाँड़ा की मरजी अस सत्रियांमोहवालय लुटाय ११०