पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३९

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भाल्हखण्ड। १३८ इतनो कहिके माहिल चलिमे मल्हना रोय उटी अकुलाय ।। त्यही समैया त्यहि अवसरमा ब्रह्मानन्द पहूँचे आय १४१ मूड़ सूधिकै रानी मल्हना अपने पास लीन बैठाय ।। बहिनी गढ़ी चन्द्रावलि तहँ नैनन आँसूरही गिराय १४२ रोय कै वोली फिरि मल्हनाते माता साँच देय बतलाय ॥ सुजी सिराउब हम सागर मा योगी गये भरोस कराय १४३ साँची वाणी के योगी हैं निश्चय पर्व द्यहें करवाय ॥ मोहिं भरोसा है योगिन का जो कछु करें सहारा माय १४४ मल्हना बोली चन्द्रावलि ते विटिया साँच दे बतलाय ।। सुजी सिरायो तुम कुँवनापर दीनो धर्म दऊ रहिजाय १४५ इतना सुनिक बेटी बोली ऐसे कही वचन का माय ।। समरथ भैया हैं ब्रह्मानंद हमरी पर्व द्यहें करवाय १४६ इतना सुनिक ब्रह्मा बोले साँची साँच देय बतलाय ।। रहौ भरोसे तुम योगिन के जानों नहीं हमारे भाय १४७ पै हम जा जो सागर को आपन मूड़ कटा जाय ॥ चढ़ा पिथौरा, है सँभरा भर वहिनी काह गई बौराय १४८ जानि बूझिकै को आगी मा आपन हाथ जरावे जाय ॥ विना 'वेंदुलाके चढ़वैया मुर्चा देवे कौन हटाय १४६ आल्हा इन्दल लग होते जो तुम्हरी पर्व देत करवाय ।। मरिगा ठाकुर सिरसावाला सब विधिशूर बनाफरराय १५० इकले दादा मलखाने विन यहु दुख परा जानपर आय ॥ होत जो ठाकुर सिरसावालो तौका चढ़न पिथौराराय १५१ शूर न देखा हम दुनिया मा जैसो रहे वीर मलखान । हाथी पटका पिरथी दारे काँपे तहाँ सबै चौहान १५२