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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४४

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महोबेकाप्रथमयुद्ध।

त्यहि ते तुम का समुझावत हौं बचुवा मानो कहा हमार॥
राह कनौजी कै तहँते है ठाकुर समरधनी तलवार ९
हाथ जोरिकै करिया बोल्यो दोऊ चरणन शीश नवाय॥
मने न करिये म्वहिं गंगा को ददुवा बार बार बलिजायँ १०
पार लगै हैं श्री गंगाजी मेरो बार न बांको जाय॥
पकरो जइहौं जो मेला में पैसा माफ लेउँ करवाय ११
हुकुम जो पावों मैं ददुवा को तौ फिरि गंगाअवों अन्हाय॥
विनती सुनिकै बहु करिया की जम्बै हुकुम दीन फरमाय १२
हुकुम पायकै सो जम्बै को अपने कह्यो सिपाहिन बात॥
करो तयारी जाजमऊ की गंगान्हान हेतु हम जात १३
हुकुम पायकै सो करिया का तुरतै होन लागि तय्यार॥
झीलम बखतर पहिरिसिपाहिन हाथ म लीन ढाल तलवार १४
यक यक भाला दुइ दुइ बरछी लीन्हेनि कड़ाबीन सबज्वान॥
बजे नगारा त्यहि सम या माँ भारी होन लाग घमसान १५
करियो चलिभात्यहि समयामाँ माता भवन पहूँचा जाय॥
हाथ जोरिकै करिया बोल्यो माता चरणन शीशनवाय १६
मोहिं आज्ञा है ददुवा की गंगा न्हान हेतु हम जायँ॥
आज्ञा पाऊँ जो माता की तौसब काज सिद्धह्वैजायँ १७
बातैं सुनिकै ये करिया की मातैं हुकुम दीन फरमाय॥
चूम्यो चाट्यो हृदय लगायो आशिर्बाद दीन हर्षाय १८
बहिनि बिजैसिनि तब बोलत भै भैया बार बार बलिजाउँ॥
मोहिं निशानी कछु लैआयो जासों यादिकरूं तव नाउँ १९
इतनी सुनिकै करिया बोला बहिनी मानो कहा हमार॥
लवों निशानी में मेलाते बहिनी कहा न टारों त्वार २०