पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४४०

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कीरतिसागरकामैदान । ४३६ इतना सुनिक रानी मल्हना तुरतै छाँड़ि दीन डिंडकार ॥ रंजित बोला तब माता ते गरीई हांक देत ललकार १५३ छाँड़ि भरोसा अव योगिनका हमरे साथ चलो तुम हाल । काह हकीकति है पिरथी कै जवलग रहे हाथ करवाल १५४ मारे मारे तलवारिन के नदिया बहे रक्त की धार ।। मूड़ न रहै जब देही माँ तवहूँ चली मोरि तलवार १५५ लड़ना मरना- रजपूतन का युग युग यही धर्म व्यवहार॥ प्राण न रहें जब देही माँ तवहीं मिटी म्बार त्यवहार १५६ साँची साँची हम बोलत हैं माता शपथ तुम्हारी खाय ।। कीरतिसागर मदनताल पर बहिनीसाथचलौतुममाय १५७ जो नहिंजैहो तुम सागर को रंजित मरी जहर को खाय । मई मईई ते चूका जो तौफिरजियतमृत्युद्वैजाय १५८ देही रहै नहिं दुनिया माँ कीरति बनी रहै सब काल ॥ मोहिं पियारी स्वइ कीरति है साँचीशपथखाउँ महिपाल १५६ सुनि सुनि बातें ये बेटा की मल्हना द्वैगै हाल विहाल । बेटा अभई माहिल वाला-- बोलावचनसांचत्यहिकाल१६० हमहूँ चलिये तुम्हरे सँग मा साँचे बचन बताएँ भाय । आजु मोहोवा खाली लखिकै गांसा आय पिथौराराय १६१ आल्हा ऊदन हैं कनउज मा ह्यां मरिगये बीरमलखान ।। अब हम लू- खुब मोहबे को सोची भली वीर चौहान १६२ पै नहिं जानत हैं अभई का जवलग रही हाथ तलवार ।। तवलग मारव हम क्षत्रिनका नदिया वही रक्की धार १६३ करो तयारी अब सागर की फूफू सांच देय बतलाय ।। काह हकीकति है पिरथी के गड़बड़ करै परवमें आय १६४