इतना सुनिकै रानी मल्हना तुरतै छाँड़ि दीन डिंडकार॥
रंजित बोला तब माता ते गरूई हांक देत ललकार १५३
छाँड़ि भरोसा अब योगिनका हमरे साथ चलो तुम हाल॥
काह हकीकति है पिरथी कै जबलग रहै हाथ करवाल १५४
मारे मारे तलवारिन के नदिया बहै रक्त की धार॥
मूड़ न रैहैं जब देही माँ तवहूँ चली मोरि तलवार १५५
लड़ना मरना रजपूतन का युग युग यही धर्म ब्यवहार॥
प्राण न रैहैं जब देही माँ तबहीं मिटी म्बार त्यवहार १५६
साँची साँची हम बोलत हैं माता शपथ तुम्हारी खाय॥
कीरतिसागर मदनताल पर बहिनीसाथचलौतुममाय १५७
जो नहिंजैहो तुम सागर को रंजित मरी जहर को खाय॥
मई मर्द्दई ते चूका जो तौफिरजियतमृत्युह्वैजाय १५८
देही रैहै नहिं दुनिया माँ कीरति बनी रहै सब काल॥
मोहिं पियारी स्वइ कीरति है साँचीशपथखाउँमहिपाल १५९
सुनि सुनि बातैं ये बेटा की मल्हना ह्वैगै हाल बिहाल॥
बेटा अभई माहिल वाला बोलाबचनसांचत्यहिकाल १६०
हमहूँ चलिबे तुम्हरे सँग मा साँचे बचन बतावैं भाय॥
आजु मोहोबा खाली लखिकै गांसा आय पिथौराराय १६१
आल्हा ऊदन हैं कनउज मा ह्यां मरिगये बीरमलखान॥
अब हम लूटैं खुब मोहबे को सोची भली वीर चौहान १६२
पै नहिं जानत हैं अभई का जवलग रही हाथ तलवार॥
तवलग मारव हम क्षत्रिनका नदिया बही रक्तकी धार १६३
करो तयारी अब सागर की फूफू सांच देयँ बतलाय॥
काह हकीकति है पिरथी कै गड़बड़ करै परवमें आय १६४
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कीरतिसागरकामैदान। ४३९
