पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४४४

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कीरतिसागरकामैदान । ४४३ कोधों तोरत शिवके धतुको जो नहिं होत . राम महराज ।। कळु नहिं शंका मन हमरे में पूरणब्रह्म राम रघुराज ५ माथ नवावों रघुनन्दन को हमपर कृपा करो भगवान ।। चौड़ा रंजित का मुर्चा मैं करिहौं सकल अगाड़ी गान ६ अथ कथाप्रसंग ।। अटा चौड़िया फिरि फाटक पर गरई हाँक दीन ललकार ।। पाँच अगाड़ी का डाखो ना ठाकुर मोहवे के सरदार ? डोलादेके चन्द्रावलि को पाछे धखो अगाड़ी पाँय ॥ हुकुम पिथौरा का याही है तुमते साँच दीन बतलाय २ इतना सुनिकै अभई बोल्यो चौंड़ा काह गयो बौराय । अस गति नाहीं पृथीराज के डोला लेयँ आज मँगवाय ३ खाली मोहबा तुम जान्यो ना मान्यो साँच वचन विश्वास ।। शूर सराहें त्यहि ठाकुर को जो अब जाय पालकी पास ४ इतना सुनिकै चौड़ा तुरते अपनी बँचिलीन तलवार । पाँव अगाड़ी का डायो ना ठाकुर उरई के सरदार ५ इतना सुनिकै रंजित ठाकुर फौजन हुकुम दीन फरमाय ।। जान न पावें दिल्लीवाले इनके देवो मूड़ गिराय ६ हुकुमपायकै यह रंजित का क्षत्रिन बँचिलीन तलबार ।। पैदल के सँग पैदल अभिरे औ असवार साथ असवार ७ संदि लपेटा हाथी भिड़िगे मारन लागि शूर सरदार ।। भाला बलछी तीर तमंचा कोताखानी चले कटार विकट लड़ाई भै फाटक पर नदिया वही रक्तकी धार ।। ना मुह फेरै दिल्लीवाले ना ई मुहवे के सरदार ६ रजित अभई की मारुन मा सब दल होनलाग खरिहान ।।