कोधों तोरत शिवके धतुको जो नहिं होत राम महराज॥
कछु नहिं शंका मन हमरे में पूरणब्रह्म राम रघुराज ५
माथ नवावों रघुनन्दन को हमपर कृपा करो भगवान॥
चौड़ा रंजित का मुर्चा मैं करिहौं सकल अगाड़ी गान ६
अथ कथाप्रसंग॥
अटा चौड़िया फिरि फाटक पर गरई हाँक दीन ललकार॥
पाँच अगाड़ी का डार्यो ना ठाकुर मोहबे के सरदार १
डोलादैकै चन्द्रावलि को पाछे धर्यो अगाड़ी पाँय॥
हुकुम पिथौरा का याही है तुमते साँच दीन बतलाय २
इतना सुनिकै अभई बोल्यो चौंड़ा काह गयो बौराय॥
अस गति नाहीं पृथीराज कै डोला लेयँ आज मँगवाय ३
खाली मोहबा तुम जान्यो ना मान्यो साँच वचन विश्वास॥
शूर सराहैं त्यहि ठाकुर को जो अब जाय पालकी पास ४
इतना सुनिकै चौंड़ा तुरतै अपनी खैंचिलीन तलवार॥
पाँव अगाड़ी का डार्यो ना ठाकुर उरई के सरदार ५
इतना सुनिकै रंजित ठाकुर फौजन हुकुम दीन फरमाय॥
जान न पावैं दिल्लीवाले इनके देवो मूड़ गिराय ६
हुकुमपायकै यह रंजित का क्षत्रिन खैंचिलीन तलबार॥
पैदल के सँग पैदल अभिरे औ असवार साथ असवार ७
सूंढ़ि लपेटा हाथी भिड़िगे मारन लागि शूर सरदार॥
भाला बलछी तीर तमंचा कोताखानी चलै कटार ८
विकट लड़ाई भै फाटक पर नदिया बही रक्तकी धार॥
ना मुहँ फेरैं दिल्लीवाले ना ई मुहबे के सरदार ९
रजित अभई की मारुन मा सब दल होनलाग खरिहान॥