तौ तौ लारैका परिमालिक का नहिंई मुच्छ डरों मुड़वाय २०
इतना सुनिकै सूरज जरिगे अपने कहा सिपाहिन टेर॥
जान न पावैं मोहबेवाले मारो एक एक को घेर २१
सुनिकै बातैं ये सूरज की क्षत्रिन खैंचि लीन तलवार॥
कीरतिसागर मदनताल पर लाग्यो होन भडाभड़मार २२
पैग पैग पर पैदल गिरिगे दुइ दुइ पैग गिरे असवार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्त की धार २३
को गति वरणै तहँ अभई कै मारै ढूँढि ढूँढ़ि सरदार॥
रंजित लड़िका परिमालिकका दूनों हाथ करै तलवार २४
सूरज ठाकुर दिल्लीवाला आला समरधनी चौहान॥
गनि गनि मारै रजपूतन का कीरतिसागर के मैदान २५
रंजित सूरज द्वउ ठकुरन का मुर्चा परा बरोबरि आय॥
दोऊ सोहैं भल घोड़न पै दोऊ रूपशील अधिकाय २६
सूरज मारैं जब रंजित का दाहिन बाँउ खेलि तव जाय॥
रंजित मारैं जब सूरज का सोऊ लैवै वार बचाय २७
उसरिन उसरिन दोऊ खेलैं पानी भर यथा पनिहार॥
कोऊ काहू ते कमती ना दोऊ लड़ैं तहाँ सरदार २८
सवैया॥
सिंह समान सो रंजित बीर औ सूरजहू बल घाटि कछूना।
मार अपार भई ललिते पै उदारन के मन शङ्क कछूना॥
शक्ति औशूल चलै तलवार सो मार कही कहिजात कछूना।
रक्त कि धार अपार बही पर हार औ जीत लखात कछूना २९
सव्जा घोड़े पर रंजितहैं सूरज सुरखा पर असवार॥