पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४४६

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कीरतिसागरकामैदान । ४४५ तोतो लारका परिमालिक का नहिंई मुच्छ डरों मुड़वाय २० इतना सुनिकै सूरज जरिगे अपने कहा सिपाहिन टेर।। जान न पावें मोहवेवाले मारो एक एक को घेर २१ सुनिक बातें ये सूरज की क्षत्रिन बँचि लीन तलवार । कीरतिसागर मदनताल पर लाग्यो होन भडाभड़मार २२ पैग पैग पर पैदल गिरिगे दुइ दुइ पैग गिरे असवार ॥ मारे, मारे तलवारिन के नदिया वही रक्त की धार २३ को गति वरणे तहँ अभई के मारै ढूंढि हूँढ़ि सरदार। रंजित लड़िका परिमालिकका दूनों हाथ करै तलवार २४ सूरज ठाकुर दिल्लीवाला आला समरधनी चौहान ।। गनि गनि मारै रजपूतन का कीरतिसागर के मैदान २५ रंजित सूरज द्वउ ठकुरन का मुर्चा परा बरोवरि आय ।। दोऊ सोहैं भल घोड़न पै दोऊ रूपशील अधिकाय २६ सूरज मारें जब रंजित का दाहिन चाँउ खेलि तब जाय ॥ रंजित मारैं जब सूरज का सोऊ लैवै वार वचाय २७ उसरिन उसरिन दोऊ खेलें पानी भर यथा पनिहार ।। कोऊ काहू ते कमती ना दोऊ लड़ें तहाँ सरदार २८ सवैया॥ सिंह समान सो रंजित बीर औ सूरजहू बल घाटि कळूना। मार अपार भई ललिते पै उदारन के मन शङ्क कळूना ।। शक्ति औशूल चलै तलवार सो मार कही कहिजात कळूना । रक कि धार अपार वही पर हार औ जीत लखात कळूना २९ सम्जा घोड़े पर रंजितहे सूरज सुरखा पर असवार ।।